नई दिल्ली(एजेंसी):कोविड-19 के खिलाफ एपल और गूगल ने संयुक्त रूप से असाधारण कदम उठाया है. उन्होंने अपने स्मार्टफोन में नई तकनीक जोड़ने का खाका पेश किया है. ये तकनीक कोविड-19 मरीज के संपर्क में आने पर यूजर्स को अलर्ट कर देगी. तकनीक का नाम रखा गया है ‘कन्टैक्ट ट्रैसिंग’. जिससे यूजर्स को क्वारंटाइन या आइसोलेट का फैसला लेने में आसानी हो जाएगी.
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गूगल और एप्पल iOS और एंड्रायड ऑपरेटिंग सिस्टम में तकनीक को दो चरणों में बना रहे हैं. मई के मध्य में दोनों कंपनियों ने iPhones और एंड्रायड फोन के फीचर में तकनीक विकसित करने का दावा किया है. इससे स्वास्थ्य सेवा में जुड़े लोगों का एप्लीकेशन के माध्यम से जानकारी शेयर करना आसान हो जाएगा. इसके साथ ही हेल्थ एपलीकेशन को मैनेज करने का खाका भी पेश किया जाएगा. इसका मतलब ये हुआ कि अगर कोई यूजर कोविड-19 पॉजिटिव पाया जाता है और अपने डाटा को पब्लिक हेल्थ एपलीकेशन में जोड़ देता है तो ऐसे यूजर्स जो पहले पीड़ित शख्स के संपर्क में आए थे उनके कंट्रैक्ट नोटिफाई हो जाएंगे. ये समय 14 दिनों का हो सकता है मगर स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रही एजेंसियां समय का निर्धारण अपने हिसाब से कर सकती हैं. दूसरे चरण में दोनों कंपनियां अपने ऑपरेटिंग सिस्टम में तकनीक को सीधे जोड़ देंगी. जिससे ‘कंटैक्ट ट्रैसिंग’ सॉफ्टवेयर चल सके. ऐसा करने के लिए एपलीकेशन को डाउनलोड करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
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तकनीक के सामने आने से पहले ही इस पर विवाद का साया पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है. ये तकनीक विवावादास्पद इसलिए है क्योंकि इससे निजता का उल्लंघन होने की आशंका है. भले स्वास्थ्य से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां मोबाइल डिवाइस के माध्यम से लोग शेयर कर सकेंगे मगर उनके लोकेशन का पता लगातार चलता रहेगा. हालांकि कंपनियों का दावा है कि लोकेशन डाटा इकट्ठा नहीं किया जाता है और ना ही कंपनियां डाटा को देख सकती हैं. गूगल और एपल का कहना है कि उनके सिस्टम को जरूरत के वक्त बंद किया जा सकता है. कंटैक्ट-ट्रैसिंग तकनीक की कोशिश दोनों कंपनियों में से किसी के लिए पहला कदम नहीं है. गूगल मार्च में कोविड-19 सूचना से संबंधित वेबसाइट लांच कर चुकी है जबकि एप्पल iPhone यूजर्स के लिए अपना स्क्रीनिंग टूल्स जारी कर दिया है. दोनों कंपनियों ने संयुक्त बयान में कहा, “दुनिया की सबसे गंभीर समस्या के हल निकालने में एक साथ आने का इससे पहले ऐसा अहम वक्त नहीं आया है.” फिलहाल इसके अलावा भी कई अन्य संस्थाएं कंटैक्ट-ट्रैसिंग सिस्टम पर काम कर रही हैं. MIT के शोधकर्ता इसी तरह से मिलती-जुलती तकनीक की योजनाओं का एलान कर चुके हैं.
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