नई दिल्ली(एजेंसी) : वर्ल्ड हैबिटेट डे हर साल अक्टूबर महीने के पहले सोमवार को मनाया जाता है. इसका मकसद सतत विकास के बारे में लोगों को जागरुक करना होता है. जिससे हर मानव बस्ती की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर खराब स्थिति में सुधार लाया जा सके.
हर किसी का सपना होता है एक अदद उनकी अपनी छत हो. लेकिन महामारी शुरू होने से पहले करोड़ों लोगों तक बुनियादी सुविधा मुहैया नहीं थी. उनकी खराब स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महामारी से पहले 1.8 बिलियन लोग या तो स्लम में रह रहे थे या शहरों में बिना घर के जिंदगी गुजारने को मजबूर थे. आंकड़ों के मुताबिक, 3 बिलियन लोगों तक साफ-सफाई के बुनियादी साधन का अभाव था. सामाजिक सुरक्षा का फायदा हासिल करने से 4 बिलियन लोग महरूम थे.
संयुक्त राष्ट्र अधिकार और जिम्मेदारी के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए हर साल वर्ल्ड हैबिटेट डे मनाता है. जहां एक तरफ हमारे अधिकार हैं तो वहीं पड़ोसियों की स्थिति में सुधार के लिए प्रयास करना भी हमारी जिम्मेदारी है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में 1985 को आवास दिवस मनाने की घोषणा की गई. उसके बाद 1986 में पहली बार प्रस्ताव पास कर वर्ल्ड हैबिटेट डे मनाने की शुरुआत की गई. इस मकसद को हासिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की तरफ से कार्यक्रम, गतिविधियां, सतत विकास के लिए विचार-मंथन और उपाय सुझाए जाते हैं. हालांकि कोरोना महामारी की वजह से इस बार ज्यादातर कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित होंगे.
हर साल की तरह इस साल भी वर्ल्ड हैबिटेट डे की थीम रखी गई है. इस बार की थीम “सभी के लिए आवास: एक बेहतर शहरी भविष्य” है. गौरतलब है कि रोटी, कपड़ा और मकान इंसानों की बुनियादी जरूरतें हैं. ये मौका होता है शहरी जिंदगी में होनेवाले बदलावों पर विचार करने का और एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी समझने का. संयुक्त राष्ट्र संघ ने हर साल की तरह इस साल भी “सभी के लिए आवास: एक बेहतर शहरी भविष्य” थीम रखा है.