नई दिल्ली(एजेंसी): नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल और कुल मिलाकर अपने कार्यकाल के छह साल पूरे कर लिए हैं. इन छह सालों के दौरान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने कई बड़े फैसले लिए हैं, जिनकी चर्चा वैश्विक स्तर पर हुई है. पूर्ण बहुमत की बीजेपी सरकार ने अपने छह साल के कार्यकाल के दौरान कई ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं, जो सीधे तौर पर पार्टी और केंद्रीय नेतृत्व की इच्छाशक्ति को जाहिर करती हैं. हम एक-एक करके उन छह उपलब्धियों को समझने की कोशिश करते हैं, जिसे इस सरकार ने पिछले छह साल के दौरान हासिल किया है.
1. कश्मीर के लिए बनी धारा 370 में संशोधन
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से ही कश्मीर का मुद्दा भारत के लिए एक अहम मुद्दा रहा है. आर्टिकल 370 और 35 A के तहत कश्मीर को दिए गए विशेष प्रावधान हमेशा से विवाद का विषय रहे हैं. इसी कश्मीर के लिए बीजेपी की पैतृक पार्टी जनसंघ के पितृ पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नारा दिया कि एक देश में एक विधान और एक संविधान होना चाहिए. पहले जनसंघ और फिर बीजेपी इस मुद्दे पर काम करती रही. 2014 में भी जब मोदी सरकार बनी तो उसकी प्राथमिकता में ये काम था, लेकिन पूरा नहीं हो पाया. तब बीजेपी ने कश्मीर को थोड़ा और बेहतर ढंग से समझने के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार बनाई थी. बाद में सईद के निधन के बाद महबूबा के साथ सरकार बनी, लेकिन फिर बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया.
मई 2019 में जब नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने और अमित शाह के रूप में देश का नया गृहमंत्री तय हुआ तो उसके कुछ ही महीने बाद कश्मीर से धारा 370 को खत्म कर दिया गया. इसके साथ ही कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया. इतना ही नहीं, ये मोदी सरकार की राजनैतिक इच्छाशक्ति ही थी कि उसने जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेश में बांट दिया. एक हिस्सा बना जम्मू-कश्मीर, जिसमें विधानसभा थी. दूसरा हिस्सा बना लद्दाख, जो बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बना. कश्मीर पर लिए गए इस फैसले का विपक्ष के लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन पूरे एहतियात के साथ मोदी सरकार अपने इस फैसले को लागू करने में कामयाब रही.
2. पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक
1947 के बंटवारे के वक्त से ही हमारे पड़ोसी पाकिस्तान ने आमने-सामने की जंग में हमेशा मुंह की खाई है. इसलिए वो आतंकियों के जरिए कभी कश्मीर तो कभी भारत के दूसरे हिस्सों को अस्थिर करने की कोशिश करता रहा है. चूंकि ये जंग आमने-सामने की नहीं है, तो कई बार चाहते हुए भी भारत इसका जवाब नहीं दे पाता था. लेकिन जब मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 18 सितंबर, 2016 को उड़ी पर आतंकी हमला हुआ तो इसका बदला लिया गया. ये मोदी सरकार की राजनैतिक इच्छाशक्ति ही थी कि उसने हमारे जवानों को सरहद पार करके पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक करने का आदेश दिया.
28 सितंबर, 2016 को भारत के कमांडोज सीमा पार गए, पीओके में बने आतंकियों के लॉन्च पैड तबाह किए और फिर वापस लौट आए. इतना ही नहीं, जब 14 फरवरी, 2019 को बालाकोट में आतंकी हमला हुआ और सीआरपीएफ के हमारे 40 जवान शहीद हुए तो मोदी सरकार ने फिर से इसका बदला दिया. इस बार भी 26 फरवरी को इंडियन एयरफोर्स के फाइटर जेट्स ने बॉर्डर पार किया और पाकिस्तानी सीमा में बने आतंकियों के अड्डों को तबाह कर दिया. बिना बड़ी राजनैतिक इच्छाशक्ति के दुश्मन देश के अंदर अपने जवानों को भेजना और हमले के बाद उन्हें सकुशल वापस लाना संभव नहीं था. लेकिन मोदी सरकार ने अपने पहले ही कार्यकाल में ये फैसले दो बार किए.
3. अल्पसंख्यकों की कुप्रथा तीन तलाक का खात्मा
विपक्षी दलों के तमाम आरोपों के बावजूद मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों से जुड़े कई कड़े फैसले लिए. मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही अल्पसंख्यकों के हितों से जुड़ा एक बड़ा फैसला लिया और एक झटके में तीन तलाक को खत्म कर दिया. हालांकि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के आखिरी दिनों में भी इसकी कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई थी. लेकिन जब मई में पीएम मोदी दोबारा सत्ता में आए तो पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा से ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2019’ को पास करवा दिया गया. राष्ट्रपति राम नाम कोविंद के हस्ताक्षर के बाद ये अध्यादेश कानून बन गया और फिर 1 अगस्त 2019 से देश में एक झटके में तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कहना कानूनन अपराध हो गया.
इससे पहले भी अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरका ने अल्पसंख्यकों से जुड़ा एक फैसला किया था. इस फैसले के तहत मोदी सरकार ने हज पर दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया था. उस वक्त इस फैसले के बाद सरकार की ओर से कहा गया था कि इसकी वजह से केंद्र को करीब 700 करोड़ रुपये की बचत होगी. इसके अलावा भी हज संबंधी एक फैसला हुआ था, जिसकी विपक्ष के साथ ही अल्पसंख्यकों ने भी मुखालफत की थी. इसके तहत मोदी सरकार ने तय किया था कि 45 साल से अधिक उम्र की महिला अकेले भी हज पर जा सकती है.
4. अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मिली नई पहचान
2014 में जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, विपक्ष उनकी एक बात के लिए लगातार आलोचना करता रहा. आलोचना ये कि नरेंद्र मोदी खूब विदेश यात्राएं करते हैं. ये सच भी है, लेकिन ये भी सच है कि इन विदेश यात्राओं के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक अलग पहचान भी बनाई है. पीएम मोदी के अंतरराष्ट्रीय दौरों का ही नतीजा है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने पीएम मोदी को अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया है. इसके अलावा और भी इस्लामिक देशों से पीएम मोदी ने अच्छे संबंध बनाए हैं. इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान के ऐतराज के बाद भी मार्च 2019 में मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गनाइजेश ऑफ इस्लामिक कॉर्पोरेशन ने भारत को मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया था और तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इसमें शामिल भी थीं. इसके अलावा जब धारा 370 हटाने का फैसला हुआ तो पाकिस्तान के ऐतराज के बाद भी कोई मुस्लिम देश पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़ा नहीं हो पाया.
अमेरिका के साथ भी पीएम मोदी ने अपने रिश्ते मजबूत किए. अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी के लिए हाउडी मोदी कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने शिरकत की. पीएम मोदी के बुलाले पर ट्रंप भी भारत आए और यहां नमस्ते ट्रंप हुआ. इससे पहले के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ भी पीएम मोदी के अच्छे रिश्ते थे. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का ही नतीजा है कि पूरी दुनिया के प्रतिनिधि संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी है.
5. गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान
1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ओबीसी आरक्षण को मंजूरी दी थी. ये पूरे देश की राजनीति को नई दिशा में ले जाने वाला फैसला था. इस फैसले का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल में ये इच्छाशक्ति नहीं थी कि वो आरक्षण को लेकर कोई नया फैसला कर सके. 2015 में जब बिहार में लोकसभा के चुनाव थे तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर एक बयान दे दिया था. तब बीजेपी और लोजपा एक साथ थे, जबकि जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन था. मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया और वो सत्ता से बाहर हो गई.
इसके बाद किसी राजनीतिक दल में आरक्षण को छूने तक की हिम्मत नहीं बची थी. लेकिन जब मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल के आखिरी चरण में थी, तो उसने सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया. लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति से मंजूरी लेकर इसे कानूनी रूप दिया गया और अब नौकरियों से लेकर शिक्षण संस्थानों में एडमिशन तक के लिए गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलना शुरू हो गया है. जनवरी, 2019 में लिए गए इस फैसले ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के रास्ते को तय करने में अहम भूमिका निभाई थी.
6. नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में नागरिकता संशोधन कानून को मंजूरी दी गई. ये एक ऐसा फैसला था, जिसके खिलाफ पूरे देश में हिंसक प्रदर्शन हुए. कई लोग मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए. लेकिन सरकार अपने फैसले पर अड़ी रही. इस फैसले के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक यानि कि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई के लिए नागरिकता के नए प्रावधान तय किए गए. 10 जनवरी, 2020 को इस कानून के लागू हो जाने से तीन देशों के इन छह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता हासिल करना आसान हो गया. नागरिकता के नए प्रावधानों में मुस्लिम का जिक्र नहीं था, जिसका व्यापक पैमाने पर विरोध हुआ.
इस विरोध की असली वजह ये थी कि इस कानून से कुछ महीने पहले ही असम की एनआरसी की अंतिम लिस्ट आई थी. इसमें करीब 19 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं था, जिनमें अधिकांश लोग बहुसंख्यक थे. इसके बाद असम बीजेपी ने इस एनआरसी की लिस्ट को खारिज कर दिया था. बाद में गृहमंत्री अमित शाह ने पहले लोकसभा में और फिर झारखंड में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि पूरे देश में एनआरसी होगा. विपक्ष ने आरोप लगाया कि सीएए लाया ही इसलिए गया है कि असम में एनआरसी के जरिए जिन बहुसंख्यकों का नाम लिस्ट से बाहर है, उन्हें वाया सीएए नागरिकता दे दी जाए. इसका खूब विरोध हुआ. फिर मोदी सरकार की ओर से साफ किया गया कि अभी एनआरसी का कोई प्रावधान नहीं है. और तभी कोरोना आ गया और विरोध प्रदर्शन खत्म हो गए.