कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की नेपाल से अपील- ‘चीन के बहकावे में न आएं’

नई दिल्ली(एजेंसी): कांग्रेस सांसद अधीर रंजन ने सोमवार को नेपाल के लोगों से चीन के बहकावे में न आने की अपील की है. उन्होंने कहा, “नेपालवासियों से हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि चीन के भड़काउ वाले भाषण में आप भारत के ऊपर कभी गलतफहमी न कर बैठे.” उन्होंने कहा, ‘नेपाल हमारा पड़ोसी देश है. मुझे नेपाल बहुत पसंद है. नेपाल हमारे परिवार की तरह है और इसलिए सदियों पुराना रिश्ता बरकरार रखें.’

इससे पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने नेपाल को आगाह किया था कि उसे अपने देश की राजनैतिक सीमाएं तय करने से पहले तिब्बत के हश्र को याद रखना चाहिए. इस बात पर नेपाली प्रधानमंत्री ओली काफी नाराज थे और इसे राजनैतिक तूल देकर एक ऐतिहासिक भूल करते हुए योगी को ही नसीहत दी थी.

दरअसल, चीन के दबाव में आकर नेपाल ने सदियों पुराने रोटी-बेटी के रिश्तों को दरकिनार कर दिया है. नाथपंथ और नेपाल के रिश्ते हजारों वर्ष पुराने हैं. महायोगी गोरखनाथ जी द्वारा प्रवर्तित नाथपंथ के प्रभाव से पूर्व नेपाल में योगी मत्स्येन्द्रनाथ की योग परम्परा का प्रभाव दिखायी देता है, जिन्हें नेपाल के सामाजिक जनजीवन में अत्यंत सम्मान प्राप्त है. इसकी झलक नेपाली समाज में प्रसिद मत्स्येन्द्र-यात्रा-उत्सव के रूप में मिलती है. गुरु गोरक्षनाथ के प्रताप से गोरखा राष्ट्र, जाति, भाषा, सभ्यता एवं संस्कृति की प्रतिष्ठा हुई.

नेपाल की जनता एवं शाह राजवंश परम्परागत रूप से महायोगी गोरक्षनाथ को प्रतिवर्ष भारत के गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मन्दिर में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी चढ़ाते हैं. आज भी नेपाली जनता के बीच गोरखनाथ राष्ट्रगुरु के रूप में पूज्य हैं. यह नाथपंथ का नेपाल में प्रभाव और तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ के प्रति आदर ही था कि 1950 के दशक में शाह राजवंश और राणा शासकों में जारी सत्ता संघर्ष के दौर में तत्कालीन सरकार को उनकी मदद लेनी पड़ी. बावजूद इसके भारत के प्रति नेपाल का यह रवैया दुखद है. वह भी तब जब योगी जी के गुरु ब्रह्मलीन अवेद्यनाथ अक्सर यह कहा करते थे कि नेपाल सिर्फ हमारा पड़ोसी मित्र राष्ट्र ही नहीं समान और साझा सांस्कृतिक विरासत के कारण सहोदर भाई जैसा एकात्म राष्ट्र है.

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