नहीं चला नेहरू-गाँधी परिवार का सेलिब्रिटी चेहरा, प्रियंका ने जहां प्रचार किया उसमे अधिकतर हारे

नई दिल्ली (एजेंसी)। यह लोकसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक है। इस चुनाव के दौरान नेहरू-गांधी परिवार की सबसे नई सदस्य प्रियंका गांधी ने भी राजनीति में कदम रखे लेकिन सियासी गलियारे में उनके इस आकस्मिक आगमन का कोई लाभ नहीं मिला। प्रियंका गांधी ने चुनाव शुरू होने के ठीक तीन महीने पहले मोर्चा संभाला था, जिसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला है। इस लोकसभा चुनाव में पूरे प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी ने 38 रैलियां कीं। इनमें से 26 रैलियां उन्होंने सिर्फ यूपी में कीं, बाकी मध्य प्रदेश, दिल्ली, झारखंड और हरियाणा में कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया। प्रियंका गांधी ने जितनी सीटों पर प्रचार किया था, उनमें से 97 फीसदी सीटें कांग्रेस हार गई।

प्रियंका गांधी पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनाई गई थीं, उनके साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था। दोनों को पार्टी में महासचिव का पद दिया गया था। उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला था। एक तरफ मजबूत बीजेपी गठबंधन था, दूसरी तरफ सपा बसपा का महागठबंधन था। इन दोनों की मौजूदगी में प्रियंका गांधी के सामने कांग्रेस का खोया जनाधार वापस लाने की चुनौती थी। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी को उतारने को कुछ लोगों ने ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताया था तो कुछ का कहना था कि कांग्रेस का यह फैसला हड़बड़ी में लिया गया है।

उत्तर प्रदेश हमेशा से भारतीय राजनीति के केंद्र में रहा है। प्रतिनिधित्व के लिहाज से यह देश का सबसे बड़ा राज्य है जहां पर लोकसभा की 543 में से 80 सीटें हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 41 सीटें हैं। इसी क्षेत्र में राज्य की कई वीआईपी सीटें भी शामिल हैं, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी सीट या फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट, गांधी नेहरू परिवार की अमेठी और रायबरेली सीट आदि।

अब जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं, यह स्पष्ट है कि राज्य के मतदाताओं पर प्रियंका गांधी का जादू नहीं चला। बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन को जबरदस्त जीत हासिल हुई है। भाजपा गठबंधन ने 352 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए को मात्र 87 सीटों पर संतोष करना पड़ा। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। नेहरू गांधी परिवार के सबसे मजबूत किलों में एक को ढहा देने में बीजेपी कामयाब रही। कांग्रेस अध्यक्ष अपनी पारंपरिक सीट अमेठी से हार गए। हालांकि, सोनिया गांधी अपने गढ़ रायबरेली को बचाने में कामयाब रहीं। कांग्रेस को पूरे प्रदेश से यही एकमात्र सीट हासिल हो सकी है।

सपा और बसपा के महागठबंंधन को मिलाकर 18 सीटें मिलती दिख रही हैं। कांग्रेस पूरे प्रदेश में 67 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, बाकी कुछ सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ दी थीं। उधर महागठबंधन को मुस्लिम और यादव मतदाताओं ने तो समर्थन दिया, लेकिन एनडीए जाट, गैरदलित और सवर्ण वोटों को हासिल करने में कामयाब रहा।

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