यस बैंक फसा संकट में

नई दिल्ली (एजेंसी). यस बैंक (Yes Bank) के इतिहास को देखें तो इस बैंक ने भारत में ज्यादातर ऐसी कंपनियों को पैसे दिए जिनका वित्तीय रिकॉर्ड साफ नहीं रहा है. यस बैंक की पिछले कुछ सालों में लगातार एक के बाद एक कई झटके लगे और वित्तीय हालत खराब होती चली गई. गुरुवार को एक और झटका लगा जब आरबीआई ने यस बैंक से पैसे निकालने की सीमा तय कर दी.

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वित्तीय संकट से जूझ रहे यस बैंक का संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा है. गुरुवार को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बैंक के ग्राहकों के लिए 50 हजार रुपये निकालने की सीमा तय कर दी है. यानी ग्राहक अब एक महीने में सिर्फ 50 हजार रुपये ही निकाल सकेंगे. इसके बाद ग्राहकों में अफरातफरी मच गई. यस बैंक के इतिहास को देखें तो इस बैंक ने भारत में ज्यादातर ऐसे कंपनियों को पैसे दिए जिनका वित्तीय रिकॉर्ड साफ नहीं रहा है.

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इससे पहले यस बैंक को सबसे बड़ा झटका तब लगा था जब 2018 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने यस बैंक के चेयरमैन राणा कपूर को पद से जबरन हटा दिया था. जब से यस बैंक के चेयरमैन राणा कपूर को हटाया गया तब से बैंक की हालत लगातार खराब होने लगी. आरबीआई को शक था कि यस बैंक एनपीए और बैलेंसशीट में गड़बड़ी कर रहा है. इसके बाद ये कार्रवाई की गई. अगर यस बैंक के इतिहास पर गौर करें तो समझ में आएगा कि आरबीआई को ये शक क्यों हुआ. छोटे से बैंक से शुरू होने वाला यस बैंक पिछले एक दशक में 3 लाख करोड़ का एसेट वाली कंपनी बन गई.

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इस दौरान यस बैंक ने देश के कई ऐसी कंपनियों को लोन दिया जो या तो दागी थे या जिनका वित्तीय लेनदेन साफ नहीं था. उन कंपनियां को कोई दूसरा बैंक लोन देने को तैयार नहीं था. इस लिस्ट में एलएंडएफएस, दीवान हाउसिंग, जेट एयरवेज, कॉक्स एंड किंग्स, सीजी पावर और कैफे कॉफी डे जैसी कंपनियां शामिल हैं, जिन्हें यस बैंक ने लोन दिया. ये सारी कंपनियां या वित्तीय रूप से खस्ताहाल हो गई या इनके एनपीए रिकॉर्ड लेवल तक पहुंच गया.

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उधर, यस बैंक के शेयर स्टॉक मार्केट में आसमान छू रहे थे. बैंक के लोनबुक, जमा, लाभ और बैलेंसशीट देखकर शेयर लगातार बढ़ रहे थे. एक समय में तो शेयर 1400 रुपये तक पहुंच गया था. लेकिन जब इसका एनपीए बढ़ना शुरू हुआ तो इसके शेयर गिरने लगे. आरबीआई ने स्थिति को समझते हुए दखल दी और आज यस बैंक का शेयर 36 रुपये तक लुढ़क गया. विदेशी बैंकर राणा कपूर का कॉरपोरेट सेक्टर में जबरदस्त नेटवर्किंग थी. उन्होंने ज्यादातर लोन 2008 के बाद बांटे. उसके बाद से भारत की आर्थिक हालत खराब होने लगी. पिछले तीन-चार साल में जिन कंपनियों को उन्होंने लोन दिया उनमें से ज्यादातर डूबने लगी और यस बैंक का एनपीए लगातार बढ़ने लगा. हालांकि यस बैंक ने पिछले कुछ महीनों में वित्तीय स्थिति सुधारने की बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली.

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