नई दिल्ली (एजेंसी) : ख़्वाबों में संजोया योरप अब वीरान पड़ा है। प्राग के ऐतिहासिक चार्ल्स ब्रिज का भुतहा सन्नाटा डरावना है। मिलान के चौक सूने हैं और वेनिस की गलियारी नदियों पर गंडोला की बजाय सन्नाटा तैर रहा है। ना नाविक के गीत हैं ना प्रेमिका की शोखियांं। फेसबुक पर अन्य परिवारों के योरप यात्रा के फोटो देखकर पैसे जोड़ने वाले एक अलग ही तरह की उच्छवास छोड़ रहे हैं। बार्सिलोना के पर्यटकों से लबरेज तट सूने पड़े हैं। न्यूयॉर्क का टाइम्स स्क्वेयर भी एकदम सुनसान पड़ा है। इस चौक की जीवंतता का गवाह रहा हर शख़्स इसकी विरानी से उठ रही हूक से खुद को जोड़ पा रहा है। इधर देश में भी कुतुब मीनार और ताजमहल से लेकर मंदिर-मस्जिद, मॉल-दफ़्तर, चौक-चौराहे सब सूने पड़े हैं। हर जगह बस कोरोना की प्रेत छाया नज़र आती है।
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विपत्ति आने पर मंदिर की ओर दौड़ने वाला मन ये देख कर हतप्रभ है कि वहांं भी कोरोना की दीवार खड़ी है। शिर्डी, तिरुपति, सिद्धी विनायक, महाकाल, पीतांबरा पीठ सब बंद। इन धर्मस्थानों पर दर्शन कर, माथा टेक कर मिलने वाला आत्मिक सुकून भी कोरोना ने छीन लिया। प्रार्थना तेज हो गई है। साकार को लेकर मन सुन्न है और निराकार से बिना यत्न के ही मन जुड़ता जा रहा है। स्कूल, कॉलेज, हवाई जहाज, मेट्रो सब सूने होते जा रहे हैं। क्वारंटाइन, आइसोलेशन और शट डाउन और सोशल डिस्टेन्सिंग, एकांतवास जैसे शब्द कानों में गूंज रहे हैं।
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हर मिलने वाला चेहरा डरा रहा है। एक-दूजे के बीच संशय की बड़ी सी खाई है। कहीं ये संक्रमित तो नहीं? दिलों में दूरियांं रखते भी थे तो दिखाते नहीं थे पर इस दूरी की मजबूरी ऐसी है कि रखनी भी है और दिखानी भी। हम तो यों भी हाथ मिला भी रहे थे तो दिल नहीं। गले मिलना रस्मी सा हो गया था। अब तो दिशानिर्देश हैं कि बस नमस्ते ही कर लीजिए। और जिनसे सचमुच मिलना चाहते हैं – हाथ, दिल, गले सब मिलते रहे हैं उनके लिए मन कसमसा रहा है। उन्हें सामने देख कर भी सीने से नहीं लगा पा रहे। मन कोरोना पर लानत-मलानत भेज रहा है।
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