नई दिल्ली (एजेंसी). देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने बृहस्पतिवार को कहा कि अयोध्या मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो पांच एकड़ भूमि मस्जिद के लिए दी है, उसे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नहीं लेना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला कानून के कई जानकारों की समझ से बाहर है.
मदनी ने कहा, “हम बार बार कहते थे कि कानून और सबूत की बुनियाद पर जो भी फैसला आएगा, उसे सम्मान की नजर से देखेंगे. लेकिन यह अजीबोगरीब इत्तेफाक है कि फैसले में कुछ ऐसी सूरत है जो कानून के बड़े जानकारों की समझ से बाहर है.”
उन्होंने कहा, “फैसले में एक तरफ कहा जा रहा है कि मस्जिद, मन्दिर तोड़कर नहीं बनाई गई. ये भी कहा गया कि मूर्ति रखने वाले अपराधी हैं और मस्जिद तोड़ने वाले भी अपराधी हैं. लेकिन अब उन्हीं लोगों को बाबरी मस्जिद वाली जगह दे दी जाती है. हम फैसले का सम्मान करते हैं लेकिन यह समझ से बाहर है कि यह कैसे आया.”
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पांच एकड़ जमीन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नहीं लेनी चाहिए.
अरशद मदनी ने कहा था कि देश के संविधान ने हमें जो शक्तियां दी हैं उसपर निर्भर करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने आखिरी हद तक न्याय के लिए लड़ाई लड़ी. देश के सुप्रसिद्ध अधिवक्ताओ की सेवाएं प्राप्त की. अपने पक्ष में तमाम सबूत इकठ्ठा किये गए और कोर्ट के सामने रखे गए. यानी अपने दावे को मजबूती देने के लिए हम जो कर सकते थे वो किया. हम इसी बुनियाद पर आशावास थे कि निर्णय हमारे पक्ष में आएगा.
बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का निपटारा कर दिया.