चेन्नई (एजेंसी). मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नीट) से उन्हीं छात्र-छात्राओं को फायदा हुआ जो कोचिंग पर लाखों रुपये खर्च कर सकते हैं। इससे मेडिकल पढ़ाई के दरवाजे गरीब छात्रों के लिए बंद हो गए। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में नीट के नियम बनाने वाली संस्था से केंद्र सरकार को संज्ञान लेने को कहा है। जस्टिस एन. किरूबाकरन और जस्टिस पी. वेलुमुरुगन की कोर्ट ने सोमवार को यह टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार का हलफनामा देखने के बाद की। इससे पूर्व 25 अक्तूबर को कोर्ट ने सरकार से यह बताने को कहा था कि राज्य के मेडिकल कॉलेजों में कितने विद्यार्थियों का प्रवेश बिना कोचिंग और कितनों का कोचिंग करने के बाद हुआ।
याचिकाकर्ता छात्र एस धीरन ने कोर्ट से मांग की है कि सरकारी और निजी कॉलेजों की मैनेजमेंट कोटा की 207 एमबीबीएस सीटों को भरने के लिए तमिलनाडु सरकार को उचित निर्देश दिया जाए।
कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता पीएचए पांडियन द्वारा पेश हलफनामे के हवाले से बताया कि राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 48 विद्यार्थियों को बिना कोचिंग और 3033 को कोचिंग करने के बाद प्रवेश मिला। वहीं, निजी कॉलेजों में बिना कोचिंग 52 और कोचिंग करने वाले 1598 विद्यार्थियों को प्रवेश मिला।
कोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि कोचिंग किए बिना प्रवेश पाने वालों की संख्या इतनी कम है। इसका मतलब यह है कि मेडिकल की पढ़ाई गरीबों के लिए नहीं। सिर्फ उन्हीं को प्रवेश मिलेगा जो लाखों रुपये खर्च करके कोचिंग करेंगे। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार अगर पूर्ववर्ती सरकार की योजनाओं को बदल रही है तो नीट परीक्षा को क्यों नहीं बदल सकती?