बॉम्बे के बाद पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर, CBI को सौंपा जाएगा सुशांत सिंह खुदकुशी केस?

नई दिल्ली(एजेंसी): सुशांत सिंह राजपूत खुदकुशी मामला अब कानूनी पचड़ों में फंसता नजर आ रहा है. अब बंबई हाईकोर्ट के बाद अब पटना हाईकोर्ट में भी सीबीआई जांच को लेकर याचिका दर्ज की गई है. इस ताजा याचिका में भी मुंबई पुलिस की जांच पर सवाल उठाए गए हैं. साथ ही ये भी कहा गया है कि इस मामले में मुंंबई और बिहार पुलिस बिल्कुल भी समर्थन के साथ काम नहीं कर रही है. लिखित पत्र के द्वारा दायर याचिका में इस मामले की सीबीआई जांच की मांग भी की गई है.

पटना हाईकोर्ट में पवन प्रकाश पाठक और गौरव कुमार की तरफ से याचिका दायर की गई है. हालांकि अभी कोर्ट को ये फैसला लेना है कि वो याचिका पर सुनवाई करेगा या नहीं. पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को लेना होगा कि आखिर इसे किसे सौंपना है और इस मामले की जांच किस प्रकार करवाई जाएगी.

अब एक नहीं बल्कि दो हाई कोर्ट में इस मामले की सीबीआई जांच और निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की गई हैं. बहुत हद तक मुमकिन है कि ये मामला कुछ समय में सीबीआई को दे दिया जाए. हालांकि महाराष्ट्र सरकार लगातार इसका विरोध कर रही है. लेकिन बिहार सरकार ने संकेत दिए हैं कि वो सुशांत सिंह खुदकुशी मामले में सीबीआई जांच की पक्षधर है.

वहीं इसके अलावा बंबई हाईकोर्ट और बिहार हाईकोर्ट में भी सीबीआई जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की गई है. कानून की बात करें तो भारतीय कानून व्यवस्था के अनुसार कोर्ट केंद्र सरकार को सीबीआई जांच के आदेश दे सकती है. साथ ही कोर्ट एक बेंच का गठन भी कर सकती है जो मामले की जांच की कार्यवाही देख सकती है.

दिल्ली के वकील सार्थक नायक ने चीफ जस्टिस को एक लिखित पीटिश भेजी है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि मुंबई पुलिस इस मामले की ठीक से जांच नहीं कर रही. अपने पत्र में उन्होंने बताया है कि मुंबई पुलिस की जांच में कई कमियां हैं. जांच में टालमटोल का रवैया अपनाया जा रहा है और मौत को आत्महत्या घोषित करने में भी जल्दबाजी की गई.

पुलिस केवल बड़े-बड़े लोगों को बुलाकर ऐसा दिखाने की कोशिश कर रही है कि मामले में जांच चल रही है. उन्होंने कहा कि एक महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी मामले में अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है. याचिकाकर्ता ने ये अपील की है कि बॉम्बे हाईकोर्ट मामले का संज्ञान ले औऱ सीबीआई या किसी अन्य निष्पक्ष जांच एजेंसी को मामला दे. या फिर कोर्ट अपनी निगरानी में एक एसटीआई का गठन करके मामले की जांच करवाए.

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