खमासणा व्रत से आत्मा के मोक्ष मार्ग में जाने का विकास होता है : विजय कीर्तिचंद्र सूरीश्वर जी

रायपुर (अविरल समाचार)। जैनाचार्य श्रीमद् विजय कीर्तिचंद्र सूरीश्वर महाराज साहब ने कहा कि जैन शासन की बलिहारी है कि उनके शासन में जीवात्मा को अपने दुष्कृत्यों की निंदा और दूसरे के सुखों की अनुमोदना का मन होता है। साधक के हृदय में धर्म के भय का संचार होता है। वह अपने दुष्कृत्यों का प्रायश्चित लेता है और भविष्य में नहीं करने का प्रत्याख्यान(संकल्प) लेता है। ऐसे समय में साधक जीवराशि खमासणा का व्रत लेता है। इस व्रत से आत्मा के मोक्ष मार्ग में जाने का विकास होता है।

यह उद्गार जैनाचार्य श्रीमद् विजय कीर्तिचंद्र सूरीश्वरजी महाराज साहब ने आज विवेकानंद नगर स्थित श्री संभवनाथ जिनालय प्रांगण की धर्मसभा में व्यक्त किए। वे मातुश्री श्राविका लाडो बाई के जीवराशि खमासणा व्रत लेने के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर लाडो बाई ने अपने परिवार सहित जीवराशि खमासणा की गाथा का श्रवण किया। आचार्यश्री ने कहा कि किसी भी उम्र में जीवात्मा की यह भावना प्रगट हो सकती है। यह भावना तब बलवती होती है, जब जीवात्मा का पुण्य एकत्र  होता है। इस समय साधक अपने सारे दुष्कृत्यों की निंदा करता है। साथ ही विराट सुकृत्यों की अंतःकरण पूर्वक अनुमोदना करता है। श्रावक या श्राविका अरिहंत की शरण, सिद्ध की शरण, साधु की शरण और धर्म की शरण लेता है।

उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों को सुनना भी पुण्य का कार्य है। हमें अपने मन के अंदर गाथा के साथ अपने दुष्कृत्यों का पश्चाताप करना चाहिए। हम अपने दुष्कृत्यों को सबके सामने खुले में स्वीकार नहीं सकते हैं, लेकिन आत्मा के सामने कुछ भी छुपा नहीं होता है। ऐसे में गुरु भगवंतों से एकांत में प्रायश्चित लेना चाहिए।

आचार्यश्री ने जीवराशि खमासणा गाथा की महत्ता बताते हुुए कहा कि भगवान के समवशरण के दौरान उनके प्रथम शिष्य (गणधर) गौतम स्वामी ने भगवान से मोक्ष कैसे प्राप्त करें का प्रश्न किया था, तब भगवान महावीर ने कहा था कि तुम्हारे जीवन में जो भी पाप हुए हों उसकी आलोचना करो और 84 लाख जीवराशि को अंतःकरण से खमा दो। इसके अलावा 18 पाप स्थानकों से बचो और अंत के समय में नवपद का जाप करो। आचार्यश्री ने कहा कि श्रावक-श्राविका को जीवराशि खमासणा के साथ, मैं तुम्हारा हूं की भावना करनी चाहिए और अंत में भाव-भक्ति पूर्वक परमात्मा की शरण स्वीकारनी चाहिए। परमात्मा से बोधि बीज और सम्यक दर्शन प्राप्त करने की कामना करनी चाहिए।

 चातुर्मास समिति के चंद्रप्रकाश ललवानी ने बताया कि कार्यक्रम के पश्चात साधर्मिक वात्सल्य का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में जैन समाज उपस्थित हुआ।

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