मुंबई (एजेंसी)। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election 2019) के नतीजों ने दिखा दिया है कि भाजपा (BJP) और शिवसेना (ShivSena) के आपस में गले मिलने के बावजूद दोनों के दिलों के बीच दूरियां कायम रही हैं। नतीजों ने भाजपा नेतृत्व की बेचैनी बढ़ा दी है। पार्टी की बेहतर प्रदर्शन करने में नाकामी ने अरसे से मौका ढूंढ रहे सहयोगी दल शिवसेना को मोलभाव करने का बड़ा अवसर मुहैया करा दिया है। शिवसेना अब 50-50 फॉर्मूले को लेकर भाजपा पर दबाव बढ़ाने का मौका नहीं चूकेगी।
चुनावी रणनीतिकार भी मानते हैं कि गठबंधन के बावजूद चुनाव प्रचार और रणनीति तैयार करने में तालमेल के अभाव ने भाजपा-शिवसेना को बढ़ी बढ़त पाने से रोक दिया। राज्य में भाजपा पुराना प्रदर्शन दोहराने तक में नाकाम रही, जबकि उसके कमजोर प्रदर्शन ने बहुत ज्यादा सीट नहीं जीतने के बावजूद शिवसेना को तेवर दिखाने का मौका दे दिया है। दरअसल भाजपा की योजना अपने हिस्से की कम से कम 90 फीसदी सीटें जीतकर बहुमत के करीब रहने की थी।
रणनीतिकारों को भरोसा था कि पार्टी अपने दम पर कम से कम 130 सीटें हासिल कर लेंगी। ऐसा होने पर वह बीते कार्यकाल की तरह शिवसेना के दबाव से खुद को बेपरवाह रखने में कामयाब रहती लेकिन लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव में भाजपा शिवसेना का गठबंधन तो हुआ, मगर दोनों दलों के नेता और कार्यकर्ता जमीन पर बेहतर तालमेल नहीं बैठा सके।
वह भी तब जब कई दिग्गज नेताओं और कार्यकर्ताओं का साथ छूटने के कारण कयास लगाए जा रहे थे कि राज्य में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन आईसीयू से बाहर नहीं निकल पाएगा।
बीते पांच साल तक शिवसेना के दबाव से बेपरवाह भाजपा की अब बेचैनी बढ़ गई है। औसत प्रदर्शन के बावजूद भाजपा की मजबूरियों को भांपते हुए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए 50-50 फार्मॅूला अपनाने पर जोर दिया है। दबाव बढ़ाने के लिए शिवसेना ने इस फॉर्मूले के तहत पहले ढाई साल की सत्ता पर भी अपना दावा ठोक दिया है।