रायपुर (एजेंसी)। छत्तीसगढ़ सरकार ने अनुसूचित जाति के आदिवासियों और नक्सली क्षेत्र के अन्य नागरिकों के खिलाफ दर्ज मामलों की समीक्षा करने के लिए एक समिति का गठन किया है। यह समिति इस महीने से अपना काम शुरू कर देगी। यह 23,000 आदिवासियों से जुड़े मामलों को देखेगी। उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त जज जस्टिस एके पटनायक समिति पहली बैठक 30-31 अक्तूबर को रायपुर में करेंगे। समिति पुलिस द्वारा कई मामलों में आरोपी ठहराए गए 16,475 आदिवासियों के मामलों को देखेगी। वह 6,743 उन मामलों को भी देखेंगे जिनमें आरोपी अंडरट्रायल का सामना कर रहे हैं। खासतौर से बीजापुर, सुकमा और बस्तर जिले के।
सूत्रों का कहना है कि समिति अपना कार्य शुरू करेगी और 11 सितंबर तक मामलों को राज्य सरकार को रेफर कर देगी। यदि समिति को किसी मामले में आरोपी के खिलाफ सबूत नहीं मिलेंगे तो वह अभियोजन की वापसी या उन मामले को बंद करने की सिफारिश कर सकती है जिसमें पुलिस ने अभी तक अदालत में रिपोर्ट दाखिल नहीं की है। समिति की सिफारिशों पर राज्य सरकार अंतिम फैसला लेगी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार समिति अनुसूचित जातियों वाले सात जिलों में पुलिस जांच का सामना कर रहे 1,141 मामलों के 4,007 आरोपियों के मामलों की समीक्षा करेगी। जिसमें से 1.552 आरोपियों को नक्सली मामले में आरोपी बताया गया है। सबसे ज्यादा नक्सली मामले सुकमा जिले में हैं इसके बाद बीजापुर का नंबर आता है। वहीं नक्सली मामलों के तहत अंडरट्रायल का सामना कर रहे लोगों में सबसे ज्यादा बस्तर जिले से हैं, इसके बाद सुकमा का नंबर है।
30 अप्रैल 2019 तक 6,743 आदिवासी जेल में अंडरट्रायल का सामना कर रहे थे। जिसमें से 1,039 के खिलाफ नक्सल मामले दर्ज हैं। इसके अलावा 16,475 आदिवासी राज्य में विभिन्न मामलों में आरोपों का सामना कर रहे हैं। जिसमें 5,239 नक्सली मामलों के तहत आरोपी हैं।
इसमें कुछ ऐसे आदिवासी शामिल हैं जिन्होंने खुद को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ अपील नहीं की है। जिसकी वजह उनकी गरीबी या नजरअंदाजी होना या फिर कानूनी मदद न मिलना शामिल है। 25 अप्रैल, 2019 तक राज्य की सात जेलों में ऐसे 1,977 अनुसूचित आदिवासी बंद हैं। जिसमें से 589 दोषी ठहराए गए हैं लेकिन उन्होंने अपील नहीं की है।