प्रसंगवश
खेल रत्न अवार्ड का हॉकी के ज़ादूगर ध्यानचंद के नाम होना,
और रूदालियों की तरह प्रलाप कर बिफरना-पसरना कांग्रेस का
अनिल पुरोहित
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खेल रत्न अवार्ड : छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को इतनी पीड़ हो रही है कि अब वे धमकी की भाषा में यह कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने स्व. राजीव गांधी के नाम से घोषित पुरस्कार का नाम बदलकर नई परिपाटी की शुरुआत की है, इसका असर कालांतर में उनके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-परिवार व भाजपा के नाम पर भी होगा। देश की आज़ादी और नवनिर्माण में संघ-परिवार और भाजपा के योगदान का मूल्यांकन समय कर लेगा; कांग्रेस के लोग कौन होते हैं संघ-परिवार और भाजपा को प्रमाणपत्र देने वाले? प्रधानमंत्री राहत कोष और राजीव गांधी फ़ाउंडेशन पर कुंडली मारकर बैठे एक ख़ानदान की चापलूसी ही उनकी नियति है और वे अपनी उसी नियति को भोगते रहें, चीन-पाकिस्तान की भाषा बोलते रहें!
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कांग्रेस के नेताओं को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि एक ऐसे व्यक्तित्व, जिन्हें अपने उस खेल (हॉकी) के लिए उस विधा का ज़ादूगर कहा जाता रहा और जिन्होंने सन 1928, 1932 और 1936 के ओलम्पिक खेलों में तीन-तीन स्वर्ण पदक अर्जित कर भारत का गौरव बढ़ाया, जिसने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के जर्मनी सेना में एयर चीफ़ मार्शल बनाए जाने के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकराया था कि ‘यह मेरे देश की ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह मुझे क्या दे और कितनी ऊँचाई तक ले जाए, बल्कि यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं अपने देश को क्या दूँ और उसे कितनी ऊँचाई तक ले जा सकूँ!’ आज उनके नाम पर खेल रत्न अवार्ड की घोषणा होने पर देश के हज़ारों-लाखों खिलाड़ियों का मस्तक ऊँचा हो गया है।
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भारत सरकार के खेल रत्न अवार्ड को मेज़र ध्यानचंद के नाम पर किए जाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के निर्णय को लेकर कांग्रेस नेताओं द्वारा किया जा रहा प्रलाप बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और ओछेपन की पराकाष्ठा है। इस निर्णय से कांग्रेस नेताओं के पेट में रह-रहकर उठ रहा मरोड़ इस बात की तस्दीक करने के लिए पर्याप्त है कि एक ख़ानदान की चापलूसी और भटैती के चलते समूची कांग्रेस का राजनीतिक अधोपतन हो चला है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व और उसके चाटुकारों को मेज़र ध्यानचंद के नाम पर खेल रत्न अवार्ड की घोषणा में भी भगवाकरण सूझ रहा है तो यक़ीनन कहा जा सकता है कि कांग्रेस अब वैचारिक तौर पर अंतहीन दरिद्रता की शिकार हो गई है!
लेकिन, छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को ‘मेज़र ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड’ की घोषणा पर चापलूसी की हदें पार करके रूदालियों की तरह बिफरना-पसरना शोभा नहीं देता। प्रदेश में कांग्रेस सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा पं. दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर शुरू की गईं योजनाओं के नाम थोक में एक साथ रातो-रात बदलकर एक ख़ानदान के नाम करने वालों को तब इस बात पर शर्म क्यों महसूस नहीं हुई, जब सन 2019 में पं. दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि (11 फ़रवरी) के दिन ही पं. उपाध्याय के नाम पर चल रही पाँच योजनाओं दीनदयाल उपाध्याय स्वावलंबन योजना, पं. दीनदयाल उपाध्याय सर्वसमाज मांगलिक भवन योजना, पं. दीनदयाल उपाध्याय एलईडी पथ-प्रकाश योजना, पं. दीनदयाल उपाध्याय आजीविका केंद्र योजना और पं. दीनदयाल उपाध्याय शुद्ध पेयजल योजना का नाम बदल दिया गया था! अभी पिछले ही वर्ष जब देश कोरोना संक्रमण की पहली लहर की गिरफ़्त में था, और लगभग इन्ही दिनों में रक्त पिपासु नक्सलियों के हमले में प्रदेश के 17 जवान शहीद हुए थे, तब प्रदेश सरकार ने अपनी कैबिनेट की बैठक में न तो जवानों की शहादत के दृष्टिगत नक्सलियों से मुक़ाबिल होने की तैयारी दिखाई और न ही कोरोना के मुक़बले की चिंता की, बल्कि बैठक में प्रदेश को राजनीतक दुराग्रह और कुसंस्कृति की तरफ धकेलने की साज़िश रची जाकर भाजपा के पितृपुरुष कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर स्थापित उस विश्विद्यालय का नाम बदल कर उसे स्व. चंदूलाल चंद्रकार विश्विद्यालय कर दिया, जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल जी के करकमलों से हुआ था। इसी तरह एक और विश्विद्यालय का नाम बदल कर उसे कांग्रेस के ही नेता रहे स्व. वासुदेव चंद्राकर के नाम पर कर दिया गया। और, तब केवल नाम नहीं बदला गया था, बल्कि कांग्रेस के लोगों ने पं. उपाध्याय और स्व. श्री ठाकरे के व्यक्तित्व-कृतित्व और वैचारिक अवदान तक पर सवाल उठाने की निर्लज्जता का प्रदर्शन भी किया था। विपक्ष की भावना को कांग्रेस किस तरह आहत करना चाहती है, किस तरह वह जानबूझ कर अपने वामपंथी सलाहकारों के झाँसे में आकर राष्ट्रवादी चिंतनधारा के मनीषियों की स्मृति को लांछित कर रही है, इसका इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? छत्तीसगढ़ में अपने 15 वर्ष लम्बे शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सरकार ने ऐसा भेदभाव कभी नहीं किया। देश-प्रदेश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महापुरुषों, भले ही वे किसी भी दल के रहे हों, की स्मृति में लगातार सम्मानों-कार्यक्रमों का आयोजन प्रदेश की भाजपा सरकार करती रही। जिन पूर्व सांसद, मंत्री और कांग्रेस पदाधिकारी रहे पत्रकार चंदूलाल चंद्राकर के बहाने प्रदेश शासन ने कुशाभाऊ ठाकरे जैसे मनीषियों का अपमान किया है, उन स्व. चंद्राकर की स्मृति में ही प्रदेश का सर्वोच्च पत्रकारिता सम्मान भाजपा सरकार हर वर्ष देती रही। कांग्रेस सांसद मिनी माता, खूबचंद बघेल, ठाकुर प्यारेलाल प्रभृति अनेकानेक मनीषी हैं जिन्हें सम्मान देते हुए और जिनकी स्मृति में सम्मान देते हुए कभी भी भाजपा ने दलगत भावना को दृष्टिगत नहीं रखा। आज खेल रत्न अवार्ड का नाम बदलने पर मेज़र ध्यानचंद के नाम पर केंद्र सरकार को एक नए पुरस्कार की घोषणा कर देने की सलाह देते कांग्रेस के लोगों की समझ को तब काठ क्यों मार गया था और तब क्यों नहीं उन्हें यह सूझा कि प्रदेश सरकार अपने ख़ानदान की चरण-वंदना करते हुए एक परिवार के नाम पर और नई योजनाएँ शुरू कर लें? कांग्रेस के लोगों को तो गुजरात के सरदार पटेल स्टेडियम के नामकरण को लेकर झूठ फैलाने से बाज आना चाहिए, क्योंकि स्टेडियम तो आज भी सरदार पटेल के ही नाम पर है, बस उसके एक नवनिर्मित हिस्से का नामकरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर किया गया है। कांग्रेसनीत संप्रग शासनकाल में तमाम औपचारिकताओं के पूरा होने के बाद भी ऐन समय पर मेज़र ध्यानचंद को भारत रत्न देने से मुकर जाने वालों को अब सरदार पटेल स्टेडियम का नाम ध्यानचंद के नाम करने की सलाह देते देखकर तरस ही आता है, जिन्हें नया रायपुर का नाम ‘अटल नगर’ बदलकर ‘नवा रायपुर’ करते भी झिझक नहीं हुई। आज छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को इतनी पीड़ हो रही है कि अब वे धमकी की भाषा में यह कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने स्व. राजीव गांधी के नाम से घोषित पुरस्कार का नाम बदलकर नई परिपाटी की शुरुआत की है, इसका असर कालांतर में उनके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-परिवार व भाजपा के नाम पर भी होगा। देश की आज़ादी और नवनिर्माण में संघ-परिवार और भाजपा के योगदान का मूल्यांकन समय कर लेगा; कांग्रेस के लोग कौन होते हैं संघ-परिवार और भाजपा को प्रमाणपत्र देने वाले? प्रधानमंत्री राहत कोष और राजीव गांधी फ़ाउंडेशन पर कुंडली मारकर बैठे एक ख़ानदान की चापलूसी ही उनकी नियति है और वे अपनी उसी नियति को भोगते रहें, चीन-पाकिस्तान की भाषा बोलते रहें!
छत्तीसगढ़ में राजनीतिक दुराग्रह का संक्रमण बददिमाग़ कांग्रेस के राजनीतिक व वैचारिक दीवालिएपन की उपज है, लेकिन कांग्रेस के नेताओं को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि एक ऐसे व्यक्तित्व, जिन्हें अपने उस खेल (हॉकी) के लिए उस विधा का ज़ादूगर कहा जाता रहा और जिन्होंने सन 1928, 1932 और 1936 के ओलम्पिक खेलों में तीन-तीन स्वर्ण पदक अर्जित कर भारत का गौरव बढ़ाया, जिसने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के जर्मनी सेना में एयर चीफ़ मार्शल बनाए जाने के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकराया था कि ‘यह मेरे देश की ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह मुझे क्या दे और कितनी ऊँचाई तक ले जाए, बल्कि यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं अपने देश को क्या दूँ और उसे कितनी ऊँचाई तक ले जा सकूँ!’ आज उनके नाम पर खेल रत्न अवार्ड की घोषणा होने पर देश के हज़ारों-लाखों उन खिलाड़ियों का मस्तक ऊँचा हो गया है, जो पूरा जीवन पुरुषार्थ करते हैं और पूरी ज़िंदग़ी मेहनत करने के बाद देश के लिए एक मेडल लेकर आते हैं। सरकारी सुविधाओं, तरह-तरह के प्रशिक्षणों के अलावा एक महान खिलाड़ी के नाम पर खेल रत्न अवार्ड की घोषणा होने पर खिलाड़ियों का मनोबल आसमान की बुलंदी पर पहुँच जाएगा और आने वाले समय में इस बात से प्रोत्साहित होकर कि यह देश, उसकी सरकारें उनके साथ खड़ी हैं, ये खिलाड़ी देश के लिए और अच्छा कर पाएंगे, केंद्र सरकार के इस निर्णय के दृष्टिगत यह विश्वास दृढ़ हुआ है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है. ये लेखक के निजी विचार हैं.)
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