मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) राजनीति के अनमोल मोती थे। सभी उन्हें बाबूजी कहते थे आज भी बाबूजी कहकर ही याद करते हैं। दुर्ग से लेकर दिल्ली तक हर जगह …।
मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) की सबसे बड़ी ताकत थी … सहजता … विनम्रता और सरल स्वभाव …। दुर्ग (Durg) से दिल्ली (New Delhi) तक के राजनीतिक पड़ाव में उनकी यह ताकत कभी कम नहीं हुई। जैसे जैसे राजनीति में उनका कद बढ़ता गया, वैसे वैसे उनकी सहजता और सरलता भी बढ़ती रही। भोपाल (Bhopal) के वल्लभ भवन से लेकर लखनऊ (Lucknow) के राजभवन (Governor House) या दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय (Congress Headquarter) तक … हर जगह उनकी सादगी और सरलता कायम रही। राज्यसभा सांसद के रूप में भी संसद में उनकी विनम्रता के किस्से आज भी मशहूर हैं।
बाबूजी ने अपने जीवनकाल में शायद ही इस बात का गुमान किया हो कि वे कितनी बड़ी राजनीतिक हस्ती हैं। भोपाल, लखनऊ और दिल्ली में रहते हुए केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों समेत दिग्गज राजनेताओं से उसी अंदाज में बातें करते, जितनी सरलता से किसी आम आदमी से बातचीत करते थे। बड़े-बड़े पदों पर रहते हुए भी उनमें जरा भी अभिमान या अहंकार नहीं रहा।
मुख्यमंत्री (Chief Minister) का पद संभालने के बाद भोपाल में बाबूजी रोज करीब 18 घंटे काम करते थे। उत्तर प्रदेश (UP) में राज्यपाल (Governor) पद पर काम करते हुए भी उनकी कार्यशैली और सहजता में कोई बदलाव नहीं आया। यूपी के लोग आज भी उनकी सरलता को याद करते हैं। उस समय यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू था। उत्तर प्रदेश के सारे फैसले राज्यपाल होने के नाते बाबूजी ही करते थे। अपनी सरलता और सहजता के साथ-साथ सुबह से देर रात तक काम करने की कार्यशैली के कारण उत्तर प्रदेश (UP) के नागरिक आज भी उनकी सराहना करते हैं।
सबसे अहम बात ये रही कि … चाहे वे भोपाल में मंत्री या मुख्यमंत्री पद पर रहे हों … या दिल्ली में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री … या फिर लखनऊ में राज्यपाल रहे हों … या फिर कांग्रेस मुख्यालय में अखिल भारतीय कांग्रेस महासचिव या कांग्रेस कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी भरे पद पर रहे हों … बाबूजी का दिल हमेशा दुर्ग शहर (Durg City) में ही लगा रहता था।
दुर्ग (Durg) शहर से जब भी कोई नागरिक या जनप्रतिनिधि उनसे मिलने जाता तो यहां के राजनीति से जुड़े लोगों के बारे में बातचीत करते। छोटी-छोटी बातें भी उन्हें याद रहती। देर तक दुर्ग का हाल पूछते रहते। शहर के विकास की बातों से लेकर पार्षदों व अन्य जनप्रतिनिधियों के हालचाल की बातें करते रहते।
मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) का चिंतन, उनकी विनम्रता और सहजता, सरलता और जनसेवा का भाव हर राजनेता के लिए सबसे बड़ी सीख है। बाबूजी ऐसे कर्मवीर थे कि कभी काम से थकते ही नहीं थे … कर्मठता ऐसी कि रोज 18-18 घंटे काम करने वाले बाबूजी 90 साल की उम्र में भी सुबह 9 बजे से अपनी कुर्सी पर बैठ जाते … रोज फाइलें निबटाते …
सचमुच मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) राजनीति के अनमोल मोती थे … महान कर्मयोगी थे … उतने ही विनम्र और सरल … आज उनका जन्मदिन है।
विनम्र श्रद्धांजलि …