मुंबई (एजेंसी).बंदिश बेंडिट्स : शब्द ब्रह्म है और स्वर की साधना, परमेश्वर की साधना है. लेकिन बीते कुछ दशकों में सरस्वती-पुत्रों ने सबसे ज्यादा भाषा को भ्रष्ट किया और संगीत को शोर में बदला है. एमेजॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई वेबसीरीज ‘बंदिश बेंडिट्स’ का पहला सीजन सनातन और वर्तमान के टकराव को सामने लाता है. एक सुंदर प्रेम कहानी के साथ. बंदिश बेंडिट्स विशुद्ध भारतीय कहानी है. जो उन दर्शक को पसंद आएगी, जिन्हें ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अच्छे और मानीखेज कंटेंट की तलाश रहती है.
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बंदिश बेंडिट्स के औसतन 40-40 मिनट की नौ कड़ियों वाली वेब सीरिज में तमाम उतार-चढ़ाव के साथ अपने रोमांच को बचाए रखती है. यहां जोधपुर (राजस्थान) में राधे (ऋत्विक भौमिक) अपने दादाजी संगीत सम्राट पंडित राधे मोहन रठौड़ (नसीरूद्दीन शाह) से सख्त अनुशासन में शास्त्रीय गायकी सीख रहा, वहीं मुंबई में पिता के लाड़-प्यार में पली पॉप सेंसेशन अनन्या शर्मा (श्रेया चौधरी) है, जिसके सोशल मीडिया में लाखों फॉलोअर हैं. एक म्यूजिक कंपनी के साथ अनन्या का तीन हिट गानों का कॉन्ट्रेक्ट है और दूसरा गाना फ्लॉप हो गया है. वह देसी बीट्स की तलाश में जोधपुर पहुंचती है और यहीं राधे से मुलाकात होती है. प्यार होता है. वे मिलकर गीत-संगीत तैयार करते हैं परंतु राधे घरवालों के डर से खुल कर सामने नहीं आता और मास्क्ड मैन के रूप में वीडियो में दिखता है. किस्मत से वही लोगों और म्यूजिक कंपनी को ज्यादा पसंद आता है. मास्क्ड मैन का राज खुलने के आगे-पीछे कहानी में कई परतें खुलती हैं. यहां पं. राधे मोहन राठौड़ का सख्त व्यक्तित्व और अनुशासन है, बरगद जैसे पिता के साये में जीते बेटों (राजेश तैलंग, अमित मिस्त्री) की बेबीसी है, हमेशा सबको खिला कर खाने वाली बहू (शीबा चड्ढा) की मार्मिक जिंदगी है, बैंक कर्ज के कारण राठौड़ों की हवेली के हाथ से निकल जाने का डर है, पूर्व महाराज के परिवार की फॉरेन रिटर्न लड़की की राधे से सगाई का रहस्य है, पं. राधे मोहन राठौड़ की पहली शादी से हुए बेटे दिग्विजय (अतुल कुलकर्णी) द्वारा पिता की संगीत सम्राट उपाधि को चुनौती है. इन सबके बीच राधे-अनन्या की लुका-छुपी के खेल जैसी प्रेम कहानी है. बंदिश बेंडिट्स सीक्रेट सुपर स्टार, रॉक ऑन और रॉकस्टार जैसे संगीत के नाम पर होने वाले फिल्मी तमाशों से बिल्कुल अलग है. इसमें संगीत का सीमेंट प्यार बैजू बावरा, अभिमान, हम दिल दे चुके सनम और सुर की तरह मजबूत है.
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हिंदुस्तानी शास्त्रीय गीत-संगीत पर आधारित ऐसी कहानी लंबे समय बाद आई है. संगीत बंदिश बेंडिट्स की धड़कन है और संगीतकार तिकड़ी शंकर-एहसान-लॉय ने पर्दे के पीछे बहुत अहम भूमिका निभाई है. वेबसीरीज की सफलता का बड़ा श्रेय उन्हें जाता है. अर्से बाद इन तीनों ने कानों को अच्छा लगने वाला संगीत दिया है, जिसमें शोर नहीं है. यहां खास तौर पर संगीत का शास्त्रीय पक्ष बहुत खूबसूरती से उभरा है. सजन बिन, लब पर आए, गरज बरस, पधारो म्हारे देस जैसी बंदिशें तो शानदार हैं ही, विरह गीत अंत में एकदम सन्नाटा बिखेर देता है. यह संगीत आश्वस्त करता है कि जिस माधुर्य को बॉलीवुडवालों और म्यूजिक कंपनियों ने खत्म कर दिया, सही जमीन मिलने पर वह फिर लहलहा सकता है.
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वेब सीरीज लिखने में मेहनत हुई है. कथा-पटकथा दोनों आम तौर पर सधी हुई है. दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े किरदारों की प्रेम कहानी के साथ घर और संगीत घराने को बचाने का संघर्ष संतुलित ढंग से आगे बढ़ा है. जबकि इस मुख्य कहानी के बीच में मुंबइया संगीत की दुनिया भी काले-घने बालों में ब्लू हेयर हाईलाइट्स की तरह नजर आती है. अच्छे लेखन से निर्देशक अमित तिवारी का काम आसान हुआ. यहां अगर कुछ खटकता है तो वे संवाद, जो कबीर, अर्घ्य और कभी-कभी अनन्या भी बोलती है. इन संवादों में अश्लील संदर्भ हैं. इनसे बचा जा सकता था. ऐसा होता सीरीज बच्चों के देखने योग्य भी हो सकती थी.
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बंदिश बेंडिट्स सभी अहम किरादारों से न्याय करती है और ऐक्टरों ने भी अपनी भूमिकाएं सशक्त ढंग से निभाई हैं. ऋत्विक भौमिक और श्रेया चौधरी का परिश्रम नजर आता है जबकि नसीर सबसे ज्यादा प्रभावी हैं. वह हाव-भाव से ही बहुत कुछ कह जाते हैं. उनके बेटे के रूप में राजेश तैलंग और बहू के रूप में शीबा चड्ढा भी इस मामले में पीछे नहीं हैं. कहानी में जोधपुर सिर्फ शहर नहीं बल्कि किरदार की तरह है. सिनेमैटोग्राफर श्रीराम गणपति ने उसे खूबसूरती से कैमरे में उतारा है. बंदिश बेंडिट्स में अर्घ्य कहता है कि हर अर्जुन को अपने कृष्ण की जरूरत होती है. सच है कि हिंदी मनोरंजन संसार में जगह बनाने की कोशिश रहे अर्जुन-ओटीटी को भी ऐसी ही कृष्ण-कहानियों की जरूरत है, जो उसे भारतीय दर्शकों के बीच मजबूती से जमा दे.
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