नई दिल्ली (एजेंसी)। राफेल लड़ाकू विमान के भारत पहुंचने से पहले भारतीय वायुसेना फ्रांस में राफेल लड़ाकू विमानों के साथ कर रही है एक बड़ा युद्धभ्यास, ‘गरूण’। ये युद्धभ्यास फ्रांस के दक्षिण-पश्चिम एयरबेस, मोंट-दे-मारसन में हो रहा है (1-12 जुलाई)। ये जगह पेरिस से करीब 700 किलोमीटर दूर स्पेन की सीमा के करीब है।
गरूण एक्सरसाइज इसलिए बेहद अहम हो जाती है क्योंकि आखिरी एक्सरसाइज वर्ष 2014 में हुई थी। यानि फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों को सौदा होने के बाद भारतीय वायुसेना की फ्रांस के साथ ये पहली और अबतक की सबसे बड़ी एक्सरसाइज है।
इस एक्सरसाइज में फ्रांस के राफेल लड़ाकू विमान हिस्सा ले रहे हैं तो भारत की तरफ से रूस में तैयार किए सुखोई फाइटर जेट हिस्सा ले रहे हैं। ये युद्धभ्यास दुनियाभर की हेडलाइन में छा गया है क्योंकि इस युद्धभ्यास के दौरान फ्रांस के एक पायलट ने सुखोई विमान को उड़ाते वक्त आसमान में सेल्फी लेकर ये कह पूरी दुनिया को हैरान कर दिया कि ये एक बेहद ही ‘शानदार एयरक्राफ्ट’ है। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि कोई नाटो देश रूस के किसी फाइटर जेट की इतनी तारीफ करे। लेकिन भारत और भारतीय वायुसेना ने इस नामुमकिन को भी कराके दिखा दिया है।
फ्रांस के मोंट दे मारसान एयरबेस पर होने वाला ये युद्धभ्यास इसलिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सितबंर के महीने में भारत को फ्रांस से राफेल विमानों की पहली खेप मिलने जा रही है। ऐसे में राफेल और सुखोई विमानों को एक साथ मिलकर दुश्मन के छक्के छुड़ाने हैं जैसाकि बालाकोट एयर-स्ट्राइक के दौरान फ्रांस के ही मिराज 2000 लड़ाकू विमानों को सुखोई विमानों ने पूरा कवर-सपोर्ट दिया हुआ था।
भारत में आने के बाद राफेल लड़ाकू विमानों की पहली स्कॉवड्रन अंबाला एयरबेस पर तैनात की जायेगी। जो पूरे पाकिस्तान के साथ साथ लद्दाख से सटी चीन सीमा की सुरक्षा संभालेगी। जबकि 18 विमानों की एक दूसरी स्कॉवड्रन, पश्चिम बंगाल के हाशिमारा में तैनात की जायेगी जो उत्तर-पूर्व राज्यों से सटी पूरी चीन सीमा की निगहबानी करेगी। यानि राफेल की तैनाती भारत के टू-फ्रंट वॉर की तैयारियों के मद्देनजर कई गई है।
भारत को फ्रांस से जो राफेल लड़ाकू विमान मिलने वाला है वो 4.5 जेनरेशन मीडियम मल्टीरोल एयरक्राफ्ट है। मल्टीरोल होने के कारण दो इंजन वाला राफेल फाइटर जेट एयर-सुप्रेमैसी यानि हवा में अपनी बादशाहत कायम करने के साथ-साथ डीप-पैनेट्रेशन यानि दुश्मन की सीमा में घुसकर हमला करने में भी सक्षम है।
अभ्यास के दौरान मीडिया से बात करते हुए फ्रांसीसी दल के कमांडर, लेफ्टिनेंट कर्नल ए. कुर्ते ने कहा है कि इस युद्धभ्यास का मकसद एक-दूसरे की उम्दा कार्यशैली और ऑपरेशन्स करने के तरीकों को सीखना है। भारतीय वायुसेना दल का नेतृत्व कर रहे ग्रुप कैप्टन, पी के शाह ने बताया कि फ्रांसीसी वायुसेना नाटो संगठन का हिस्सा होने के नाते दूसरे देशों में जाकर भी अपने एयर-मिशन को अंजाम देती है। इसलिए उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। साथ ही जल्द राफेल लड़ाकू विमान भी भारत को मिलने वाले हैं, ऐसे में उनके साथ युद्धभ्यास करना एक बेहतरीन अनुभव है।
फ्रांस के साथ हुए सौदे में जो 36 राफेल फाइटर प्लेन भारत को मिलने वाले हैं, वे अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से लैस हैं। सबसे खास है दुनिया की सबसे घातक समझे जाने वाली हवा से हवा में मार करने वाली मेटयोर मिसाइल। ये मिसाइल चीन तो क्या किसी भी एशियाई देश के पास नहीं है। यानि राफेल प्लेन वाकई दक्षिण-एशिया में गेम-चेंजर साबित हो सकता है। इस मिसाइल की रेंज करीब 150 किलोमीटर है। जानकारी के मुताबिक, भारत को मिलने वाले राफेल विमान फ्रांस के राफेल पर भी भारी पड़ सकते हैं। क्योंकि फ्रांस राफेल विमानों को 90 के दशक से ओपरेट कर रहा है। इसके अलावा राफेल फाइटर जेट लंबी दूरी की हवा से सतह में मार करने वाली स्कैल्प क्रूज मिसाइल और हवा से हवा में मार करने वाली माइका मिसाइल से भी लैस है।
राफेल प्लेन में एक और खासयित ये है कि इसके पायलट के हेलमेट में ही फाइटर प्लेन का पूरा डिस्पले सिस्टम होगा। यानि उसे प्लेन के कॉकपिट में लगे सिस्टम को देखने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी। उसका पूरा कॉकपिट का डिस्पले हेलमेट में होगा। राफेल बनाने वाली कंपनी, दसॉल्ट से भारत ने ये भी सुनिश्चित कराया है कि एक समय में 75 प्रतिशत प्लेन हमेशा ऑपरेशनली-रेडी रहने चाहिए। इसके अलावा भारतीय जलवायु और लेह-लद्दाख जैसे इलाकों के लिए खास तरह के उपकरण लगाए गए हैं।
जानकारी के मुताबिक, भारत ने राफेल सौदे में करीब 710 मिलियन यूरो (यानि करीब 5341 करोड़ रुपये) लड़ाकू विमानों के हथियारों पर खर्च किए हैं। गौरतलब है कि पूरे सौदे की कीमत करीब 7.9 बिलियन यूरो है यानि करीब 59 हजार करोड़ रुपये।