नई दिल्ली (एजेंसी)। राफेल मामले पर सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट राफेल मामले पर दोबारा सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। राफेल मामले पर बुधवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की दलीलों को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय से लीक हुए दस्तावेजों की वैधता को मंजूरी दे दी है। कोर्ट के फैसले के मुताबिक दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का हिस्सा होंगे।
राफेल डील पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सार्वजनिक मंचों से पीएम मोदी पर राफेल डील को लेकर निशाना साधते रहे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का राफेल मामले पर निर्णय यह साबित करेगा कि इसे कांग्रेस चुनाव में मुद्दा बना सकती है या नहीं। अगर सुप्रीम कोर्ट राफेल मामले में पहले दिए फैसले पर पुनर्विचार के लिए तैयार हो जाता है तो जाहिर तौर पर भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
आज सुप्रीम कोर्ट केन्द्र की प्राथमिक आपत्ति पर फैसला सुनाएगा कि क्या राफेल मामले में फैसले पर पुनर्विचार के लिए विशेषाधिकार वाले दस्तावेजों को आधार बनाया जा सकता है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ताओं से 15 मार्च को हुई सुनावाई में कहा था कि वो राफेल डील के दस्तावेज लीक होने से जुड़ी प्राथमिक आपत्तियों पर फोकस करें। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ की पीठ ने कहा था कि सरकार द्वारा उठाई गई प्राथमिक आपत्तियों पर निर्णय लेने के बाद ही इस मामले में फैक्ट की जांच की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रखा था। इन दस्तावेजों को मान्यता देने पर केंद्र सरकार की ओर से आपत्ति जाहिर की गई थी। 14 दिसंबर के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे के खिलाफ सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
पीठ ने कहा था, ‘केंद्र की ओर से जताई गई प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करने के बाद ही हम पुनर्विचार याचिकाओं के अन्य पहलू पर विचार करेंगे। अगर हम प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर देते हैं, तभी दूसरे पहलुओं को देखेंगे।’
केंद्र सरकार ने दावा किया था कि फ्रांस के साथ राफेल लड़ाकू विमान सौदे से जुड़े दस्तावेजों को विशेषाधिकार प्राप्त बताया था और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के अनुसार इन दस्तावेजों को सबूत नहीं माना जा सकता।
केंद्र की तरफ से अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा था कि संबंधित विभाग की अनुमति के बिना कोई उन्हें अदालत में पेश नहीं कर सकता क्योंकि इन दस्तावेजों को सरकारी गोपनीयता कानून के तहत भी संरक्षण मिला है। सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 (1)(ए) के अनुसार भी जानकारी सार्वजनिक करने से छूट मिली हुई है। प्रशांत भूषण ने सु्प्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि केंद्र सरकार की आपत्तियां दुर्भावनापूर्ण हैं और पूरी तरह अविचारणीय हैं।