नई दिल्ली (एजेंसी). डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) : हाल के दिनों में कई कंपनियां डिजिटल गोल्ड की बिक्री के क्षेत्र में उतरी हैं. ये कंपनियां पेटीएम, अमेजन पे और कुवेरा, ग्रो और स्टॉक ब्रोकर्स के जरिये भी डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) बेच रही हैं. ऑगमेंगोल्ड, एमएमटीसी-पीएएमपी और सेफगोल्ड ब्रांड नाम से डिजिटल गोल्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनियां डिजिटल गोल्ड बेच रही हैं. लेकिन सवाल ये है कि इनकी विश्वसनीयता कितनी है? क्या इनसे डिजिटल गोल्ड खरीदने में कोई जोखिम नहीं है? या फिर इनसे गोल्ड खरीदना सस्ता पड़ रहा है?
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डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) की खरीद में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस कारोबार के लिए कोई रेगुलेटर नहीं है. जब आप डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) खरीदते हैं, तो उत्पादक कंपनी आपके नाम पर आपकी ओर से चुकाई गई कीमत के बराबर सोना खरीद लेती हैं. यह गोल्ड थर्ड पार्टी या सेलर, जैसे एमएमटीसी-पीएपीएम के पास सुरक्षित रहता है. अमूमन, इसके लिए एक ट्रस्टी नियुक्त किया जाता है, जो यह देखता है कि निवेशक की ओर से खरीदा गया गोल्ड की क्वांटिटी और क्वालिटी दुरुस्त है कि नहीं. लेकिन ट्रस्टी अपना काम ठीक तरह से कर रहा है या नहीं इसके लिए कोई रेगुलेटर नहीं है. जबकि गोल्ड ईटीएफ जैसे प्रोडक्टर के लिए सेबी और गोल्ड बॉन्ड के लिए आरबीआई रेगुलेटर के तौर पर काम करते हैं.
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Digital Gold की खरीद पर जीएसटी लगता है. इसमें भी फिजिकल गोल्ड की खरीद जितना ही यानी 3 फीसदी जीएसटी लगता है. डिजिटल गोल्ड की एक होल्डिंग पीरियड होती है, इसके बाद ग्राहक को फिजिकल गोल्ड के तौर पर डिलीवरी लेनी होती है. लेकिन इसमें भी डिलीवरी और मेकिंग चार्जेज जुड़ा होता है. क्योंकि फिजिकल गोल्ड भी सिक्के या बार के तौर पर डिलीवर होता है. मेकिंग चार्ज सिक्के के डिजाइन और वजन पर निर्भर करता है.
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