नई दिल्ली(एजेंसी): एनसीडी या नॉन कन्वर्टिबल डिबेंचर ऐसा फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंटल होता है, जिसे कंपनियां जारी करती हैं. इसके जरिये कंपनियों का मकसद पैसा जुटाना होता है. निवेशकों को एक तय दर से ब्याज मिलता है. एनसीडी एक तय अवधि के लिए होता है. मैच्योरिटी पर निवेशकों को ब्याज के साथ अपनी मूल रकम मिलती है. एनसीडी बैंक एफडी की तरह डेट इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं.
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एनसीडी को चूंकि एक तय समय के बाद शेयर में नहीं बदला नहीं जा सकता इसे नॉन कर्न्विटबल डिबेंचर्स कहा जाता है.एनसीडी दो तरह के होते हैं. सिक्योर्ड और अन-सिक्योर्ड. सिक्योर्ड एनसीडी में निवेश का मतलब यह है कि कंपनी के डिफॉल्ट होने का खतरा नहीं होता है. इसमें कंपनी की सिक्योरिटी होती है. अगर कंपनी निवेश को पेमेंट नहीं कर पाती है तो निवेशक उसके एसेट बेच कर अपना पैसा वसूल सकते हैं. अनसिक्योर्ड एनसीडी में सिक्योरिटी नहीं होती है. लिहाजा सिक्योर्ड की तुलना में इसमें जोखिम होता है. मैच्योरिटी पर कंपनी निवेशकों को निवेश की मूल रकम के साथ ब्याज लौटाती है. वैसे, कंपनी ब्याज का भुगतान मासिक, तिमाही और सालाना आधार पर कर सकती है. अगर आप ब्याज नहीं लेते हैं तो मैच्योरिटी पर मूल और ब्याज के साथ आपका पैसा मिलता है.
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एनसीडी पर एफडी से ज्यादा ब्याज मिलता है. इन्हें फिजिकल फॉर्म और डीमैट अकाउंट दोनों के जरिये खरीद सकते हैं. इन्हें आप बेच भी सकते हैं. शेयर मार्केट या डायरेक्टर ट्रांसफर के जरिये इन्हें बेचा जा सकता है. शेयर मार्केट में बेचने के लिए आपको अपने डिबेंचर के पहले डीमैट में बदलना पड़ता है. फिर शेयर ब्रोकर को बदलना होगा कि आप उन्हें बेचना चाहते हैं. शेयर ब्रोकर आपके लिए खरीदार तलाशता है. डायरेक्ट ट्रांसफर में आपको खुद खरीदार तलाशना होता है. इसकी जानकारी कंपनी को देनी होती है.
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