नई दिल्ली(एजेंसी): पंचांग के अनुसार 21 अक्टूबर 2020 को नवरात्रि का पांचवा दिन है. नवरात्रि का पांचवा दिन स्कंदमाता को समर्पित है. इस दिन को नवरात्रि की पंचमी भी कहा जाता है. क्योंकि इस दिन आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है.
नवरात्रि में मां आदि शक्ति के नौ रूपों का पूजन किया जाता है. हर दिन शक्ति के अलग रूप की पूजा होती है. नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के सभी अवतारों की पूजा करने से जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होती हैं और सुख समृद्धि आती है. वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की जन्म कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर होता हैं वे यदि इस दिन स्कंदमाता की पूजा करते हैं तो वृहस्पति की अशुभता दूर होती है. वहीं बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है. वृहस्पति ग्रह शिक्षा, उच्चपद और मान सम्मान का कारक है.
नवरात्रि के पांचवे दिन स्कन्दमाता शेर पर सवार होकर आती हैं. स्कन्दमाता की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसे इस मृत्युलोक में परम शांति का अनुभव होने लगता है. माता की कृपा से उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं.
स्कन्दमाता माता को पद्मासना देवी भी कहा जाता है. इनकी गोद में कार्तिकेय बैठे होते हैं इसलिए इनकी पूजा करने से कार्तिकेय की पूजा अपने आप हो जाती है. वंश आगे बढ़ता है और संतान संबधी सारे दुख दूर हो जाते हैं. घर-परिवार में हमेशा खुशहाली रहती है. कार्तिकेय की पूजा से मंगल भी मजबूत होता है. मां स्कंदमाता को सुख शांति की देवी माना गया है.
इस दिन पीले रंगे के कपड़े पहनकर माता की पूजा करें, इससे शुभ फल की प्रप्ति होती है. उन्हें पीले फूल अर्पित करें. उन्हें मौसमी फल, केले, चने की दाल का भोग लगाए.
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम एक राक्षस ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगा. कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उसके सामने प्रकट हुए. ब्रह्मा जी ने उससे वरदान मांगने को कहा. वरदान के रूप में तारकासुर ने अमर करने के लिए कहा. तब ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है. निराश होकर उसने ब्रह्मा जी कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही उसकी मृत्यु हो. तारकासुर की ऐसी धारणा थी कि भगवान शिव विवाह नहीं करेंगे. इसलिए उसकी मृत्यु नहीं होगी. ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया और अदृश्य हो गए. इसके बाद उसने लोगों पर अत्याचार करना आरंभ कर दिया. तारकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे और मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. तब शिव जी ने पार्वती जी से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें. बड़े होने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया. स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय की माता हैं.