हंसाते-हंसाते लोगों को रुलाने वाले ‘जादूगर’ चार्ली चैपलिन का शव हो गया था चोरी

नई दिल्ली(एजेंसी): हंसना किसे अच्छा नहीं लगता. मनुष्य और जानवर में एक बड़ा अंतर है कि जानवर मनुष्य की तरह अपनी खुशी का इजहार हंसकर नहीं कर सकता. हास्य कवि सम्मेलनों का प्रसिद्ध जुमला है कि गधे और इंसान में सबसे बड़ा अंतर है कि इंसान हंस सकता है और गधा नहीं. अगर कोई गधा हंसने लगे तो समझिए वो इंसान बनने की ओर है और अगर कोई इंसान हंसना छोड़ दे तो समझिए कि वो गधा होने की ओर अग्रसर है. प्रकृति ने हंसने की कला तो सभी मनुष्यों को दी है लेकिन हंसाने की कला कुछ चुनिंदा लोगों को ही दी है. इन्हें फिल्मों और कला के क्षेत्र में कॉमेडियन के तौर पर जाना जाता है. ये वो लोग हैं जो अपनी निजी जिंदगी के दर्द को पीछे रखकर दूसरों के चेहरों पर मुस्कान लाने का काम करते हैं.

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ऐसा ही एक कलाकार आज से 130 साल पहले जन्मा था. बिना कुछ बोले हंसाते हंसाते लोगों को रोने पर मजबूर कर देने वाले विश्व के इस सबसे महान कॉमेडियन का नाम चार्ली चैपलिन था. चार्ली चैपलिन का जन्म 16 अप्रैल 1889 को इंग्लैंड के वॉलवर्थ में हुआ था. महज पांच साल की उम्र में पहला ‘स्टेज शो’- काले-सफेद पर्दे पर हंसी के रंग भरने वाले चार्ली के जीवन की शुरुआत ही तकलीफों से हुई. चार्ली की मां हैना चैप्लिन और पिता चार्ल्स स्पेंसर चैप्लिन, सीनियर म्युजिक हॉल में गाते और अभिनय करते थे. कॉमेडियन के साथ साथ चार्ली एक प्रसिद्ध म्यूजिशियन भी थे. उन्होंने अपने जीवन के 75 वर्ष संगीत के लिए काम किया.

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चार्ली जब महज पांच साल के थे तब एक बार उनकी मां स्टेज पर गाना गा रही थीं. उसी समय गले की एक बीमारी के कारण उनकी आवाज बंद हो गई और वो आगे नहीं गा पायीं. इससे वहां मौजूद दर्शक बेहद नाराज हुए और जोर जोर से चिल्लाने लगे. कॉन्सर्ट के मैनेजर ने पांच साल के चार्ली को मंच पर भेज दिया. छोटे से चार्ली ने अपनी मासूम सी आवाज में अपनी मां का ही गाना गया. इससे वहां मौजूद दर्शक बहुत खुश हुए और सिक्कों की बारिश कर दी.

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‘तानाशाही’ का जवाब भी हास्य से- चार्ली अपनी ज्यादातर फिल्मों में ट्रैंप नाम का किरदार अदा करते थे. माना जाता है कि ये किरदार उनका अपना ही अतीत था जिसे उन्होंने अपने मुफलिसी के दौर में जिया था. इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि उस दौर में जब पूरा यूरोप आर्थिक महामंदी की तबाही से गुजर रहा था, चारों ओर तानाशाहों का आतंक था ऐसे वक्त में चार्ली ने हास्य को अपना हथियार बनाया. चार्ली ने लोगों को सिखाया कि डर को हास्य से हराया जा सकता है.

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चार्ली चैप्लिन और महात्मा गांधी की मुलाकात- एक बार चर्चिल से मुलाकात के दौरान चार्ली ने गांधी जी से मिलने की इच्छा जाहिर की थी. चार्ली चैप्लिन की डायरी के मुताबिक वो इस सोच में थे कि राजनीति के ऐसे माहिर खिलाड़ी से किस मुद्दे पर बात की जाए. आखिर दोनों की मुलाकात हुई और भारत के आजादी के आंदोलन से लेकर मशीनों के प्रति गांधी जी के विरोध जैसे मुद्दों पर बात हुई.

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जब चार्ली चैप्लिन का शव चोरी हो गया- 88 साल तक लोगों गुदगुदाने वाला यह महान कलाकार 1977 को 25 दिसंबर यानी क्रिस्मस के दिन दुनिया को अलविदा कह गया. चार्ली की मृत्यु से जुड़ा भी एक बेहद रोचक किस्सा है. उनके निधन के बाद उनके शव को चोरी कर लिया गया. उनके शव के बदले उनके परिवार से फिरौती की मांग की गई. 11 हफ्ते बाद उनका शव वापस मिला.

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सम्मान-पुरुस्कार: टाइम मैगजीन के कवर पर जगह पाने वाले पहले एक्टर- 1929 में ‘द सर्कस’ के लिए ऑस्कर अवार्ड ने ऑनरेरी अवार्ड दिया. 1972 में लाइफ टाइम ऑस्कर अवॉर्ड दिया गया. 1952 में बेस्ट ओरिजनल म्युजिक स्कोर पुरस्कार लाइमलाइट के लिये प्राप्त हुआ

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1940 में द ग्रेट डिक्टेटर में किये अभिनय के लिये सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार, न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक सर्कल अवार्ड से सम्मानित किया गया. 1972 में करिअर गोल्डन लायन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया. टाइम मैगजीन के कवर पर जगह पाने वाले पहले एक्टर चार्ली चैपलिन के जीवन पर खुद 82 फिल्में बनी हैं. चार्ली चैप्लिन की जिंदगी का फलसफ- मेरा दर्द किसी के लिए हंसने की वजह हो सकता है, पर मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द की वजह नहीं होनी चाहिए.”

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