नई दिल्ली(एजेंसी): शाहीन बाग में CAA विरोधी आंदोलन के दौरान सड़क रोक कर बैठी भीड़ को हटाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सार्वजनिक स्थानों पर धरना प्रदर्शन करना सही नहीं है. इससे लोगों के अधिकारों का हनन होता है. सु्प्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि कोई भी समूह या शख्स सिर्फ विरोध प्रदर्शनों के नाम पर सार्वजनिक स्थानों पर बाधा पैदा नहीं कर सकता है और पब्लिक प्लेस को ब्लॉक नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “शाहीन बाग इलाके से लोगों को हटाने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी. विरोध प्रदर्शनों के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है. प्रशासन को खुद कार्रवाई करनी होगी और वे अदालतों के पीछे छिप नहीं सकते. लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चलते हैं.”
दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 100 दिनों तक लोग सड़क रोक कर बैठे थे. दिल्ली को नोएडा और फरीदाबाद से जोड़ने वाले एक अहम रास्ते को रोक दिए जाने से रोज़ाना लाखों लोगों को परेशानी हो रही थी. इसके खिलाफ वकील अमित साहनी और बीजेपी नेता नंदकिशोर गर्ग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.
21 सितंबर को मामला जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने लगा. उस दिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जजों को बताया कि लॉकडाउन लागू होने के बाद प्रदर्शकारियों को सड़क से हटा दिया गया था. इस जानकारी के बाद कोर्ट ने मामले पर आगे सुनवाई को गैरज़रूरी माना.
याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट से अनुरोध किया था कि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचाव के लिए वह कुछ निर्देश दे. सुनवाई के दौरान भी कई बार लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन के अधिकार और लोगों के मुक्त आवागमन के अधिकार में संतुलन की बात उठी थी. जजों ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 21 सितंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था और आज अपना फैसला सुना दिया.