विमान हादसे के वक्त ब्लैक बॉक्स की क्यों होती है चर्चा, इसके रंग के पीछे की हकीकत

नई दिल्ली(एजेंसी): प्लेन हादसा के वक्त अक्सर आप ब्लैक बॉक्स के बारे में सुनते होंगे. दुर्घटना के बाद कहा जाता है कि ब्लैक बॉक्स मिलने पर ही इसके कारणों का पता चलेगा. लोग इसके नाम में ब्लैक जुड़े होने से समझ लेते हैं कि बॉक्स का रंग काला होता है. जानकारी के लिए मालूम होना चाहिए कि दरअसल ब्लैक बॉक्स काले रंग का नहीं होता बल्कि तेज माल्टा रंग यानी नारंगी रंग का होता है.

विमान दुर्घटना के वक्त आग और मलबे की वजह से इसका रंग काला हो जाता है. एक राय ये भी है कि शुरुआती डिजायन में इसे पूरी तरह काले रंग से पेंट किया जाता था. इस वजह से इसका नाम ब्लैक बॉक्स मशहूर हो गया. आम बोलचाल की भाषा से इतर विशेषज्ञ इसको इलेक्ट्रोनिक फ्लाइट डेटा रिकॉर्डिंग कहते हैं. ब्लैक बॉक्स दो हिस्सों में होता है.एक हिस्से को फ्लाइट डेटा रिकॉर्ड (FDR) और दूसरे हिस्से को कॉकपिट वायरस रिकॉर्ड (CVR) कहा जाता है. ब्लैक बॉक्स हर विमान के टेल में ये उसके करीब फिट किया जाता है. FDR हिस्सा हवा में उड़ान भरने के दौरान विमान के आगे बढ़ने की रफ्तार, ऊंचाई, हवा की रफ्तार, तापमान, फ्यूल लेवल, ऑटो पायलट स्टेटस समेत कई बातों को नोट करता है. आधुनिक FDR सैकड़ों पैरामीटर को अपने पास रिकॉर्ड करता है और ये रिकॉर्डिंग करीब 25 घंटों का बैकअप रखती है.

ब्लैक बॉक्स बनाने का विचार सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया के ड्यूड वारेन के दिमाग में आया था. उनके पिता की मौत 1934 में विमान हादसे में हुई थी. ड्यूड वारेन की उम्र पिता की मौत के वक्त 9 साल की थी. ड्यूड ने 1950 में ब्लैक बॉक्स पर काम करना शुरू किया. 1953 में पहली बार एयरोनोटिकल रिसर्च लेबोरेटरी में ब्लैक बॉक्स तैयार किया गया.

फ्लाइट डेटा रिकॉर्डिंग डिवाइस पहली बार दूसरे विश्वयुद्ध के समय ब्रिटेन में तैयार की गई. आधुनिक डिजिटल रिकॉर्ड कॉकपिट में होनेवाली दो घंटे की बातचीत को रिकॉर्ड करता है. इसके बाद ये बातचीत ओवरराइट हो जाती है. रिकॉर्डिंग में विमान के अंदर होनेवाली बातचीत, बैकग्राउंड आवाज, क्रू मेंबर का आपस में संपर्क और विमान के कंट्रोल टॉवर से होनेवाली बातचीत रिकॉर्ड होती रहती है.

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