मुंबई: मेट्रो कारशेड के मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार आमने-सामने आ गए हैं. सीएम उद्धव ठाकरे ने पिछले महीने मेट्रो कारशेड तीन को आरे कॉलोनी से रद्द कर कांजुरमार्ग शिफ़्ट करने का एलान किया था. महाराष्ट्र सरकार के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने पत्र लिखकर आपत्ति दर्ज कराई है.
मेट्रो कारशेड के निर्माण के लिए कांजुरमार्ग की जो जमीन महाराष्ट्र सरकार ने एमएमआरडीए को दी हैं उसपर जारी निर्माण कार्य को गलत बताते हुए डीपीआईआईटी (डिपार्टमेंट फॉर प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इनटर्नल ट्रेड) ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव संजय कुमार को खत लिखा हैं. डीपीआईआईटी केंद्र सरकार के अंतर्गत आती है.
केंद्र सरकार ने भेजे पत्र में लिखा है, “कांजुरमार्ग के सॉल्ट पैन वाली जमीन पर जारी कारशेड निर्माण का कार्य रोका जाए मेट्रो कारशेड के निर्माण के लिए कांजुरमार्ग की जो जमीन महाराष्ट्र सरकार ने एमएमआरडीए को दी हैं उसपर जारी निर्माण कार्य को गलत बताते हुए डीपीआईआईटी ने यह भी लिखा गया हैं कि कलेक्टर अपना फैसला पीछे लें ताकि केंद्र सरकार के हितों की रक्षा हो सकें.”
उधर महाराष्ट्र सरकार की और से दावा किया जा रहा है की कांजुरमार्ग की जमीन पर महाराष्ट्र सरकार का हक़ है और नियमों के तहत ही इस जमीन पर कारशेड बनाया जा रहा हैं. बता दें कि सॉल्ट पैन की इस जमीन के मालिकाना हक को लेकर पिछले कई दशकों से केंद्र और राज्य सरकार में विवाद चल रहा है.
कांजुरमार्ग के 102 हेक्टर जमिन पर कारशेड का निर्माण होना हैं. देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने मेट्रो तीन के कारशेड के लिए आरे कॉलोनी की जगह निश्चित की थी. इसलिए आरे कॉलोनी के जंगल में मौजूद करिब 2000 से ज़्यादा पेड़ों पर रातों रात कुल्हाड़िया चलीं थीं. इसके बाद फडणवीस सरकार में शामिल शिवसेना ने आदित्य ठाकरे के नेतृत्व में कारशेड का खुलकर विरोध किया. विधानसभा के चुनाव के वक़्त शिवसेना ने जनता से वादा किया कि अगर हमारी सरकार आई तो आरे कारशेड को रद्द किया जाएगा.
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनने के तुरंत बाद सीएम उद्धव ठाकरे ने आरे मेट्रो शेड पर रोक लगा दी. अक्टूबर महीने में सीएम ने मेट्रो कारशेड को कांजुरमार्ग शिफ़्ट करने का फैसला लिया जिसके बाद पूर्व सीएम ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि फैसला दुर्भाग्यपुर्ण है. साथ ही उन्होंने इसे अहंकार में लिया हुआ फ़ैसला बताया था.
साफ़ है कि अगर मेट्रो कारशेड को लेकर राजनीति ऐसे ही होती रही तो मेट्रो का प्रस्तावित ख़र्च और बढ़ेगा. जानकार मानते हैं कि राजनीति के चक्कर में मेट्रो का काम अपने लक्ष्य से पहले ही काफ़ी पीछे हो चुका है. उमीद है कि राजनीतिक दल मुंबईकर के हितों को ध्यान में रखकर मामले को जल्द सुलझाएंगे.