धनतेरस को किया जाता है यमदीप दान, नहीं होता अकाल मृत्यु का भय

क्या हैं यमदीप दान धनतेरस में कैसे होगा जीवन सुलभ, सुरक्षित

ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे

रायपुर (अविरल समाचार). धनतेरस के दिन किया जाने वाला यम दीप दान मनुष्य के ऐश्वर्य और उसके कर्मों के प्रकृति में सीधा सम्बन्ध प्रदर्शित करता है। यम, न्यायाधिपति शनि के भ्राता है। शनि कर्म की प्रकृति के आधार पर ही मनुष्य के तात्कालीन और दीर्घ कालीन भाग्य को निर्धारित करते है। लक्ष्मी पूजन की ठीक पहले किया जाने वाला यम दीप दान मनुष्य के आरोग्य, उन्नति और ऐश्वर्य के उपभोग के अंतर्सम्बन्धों को स्पष्ट करता है।

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‘निर्णयामृत’ निर्णयसिन्धु’ और ‘स्कन्द पुराण’ तीनो में ही यम दीप दान का विस्तृत विवरण मिलता है। धनतेरस की सायं को किये जाने वाले यम दीप दान को लेकर एक प्रचलित लघु कथा है कि, यमराज ने अपने यम दूतों से किसी के प्राण हरते समय करुणा का भाव आने को लेकर जब प्रश्न किया तो यमदूतों ने एक राजा के युवा पुत्र के प्राण हरते समय उसकी पत्नि द्वारा किये विलाप से उत्पन्न हुए करुणा के भाव का उल्लेख किया। तब यमराज ने कहा कि धन त्रयोदशी के प्रदोष काल में जो भी दीप का दान करेगा उसकी अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जायेगा।

कब और कैसे करें यम दीप दान

यम दीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । चारों दिशाओं की ओर मुख की हुई चार रूई की बत्तियां रख कर दिये को तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें । प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पुजन करें । उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रख दें। दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चार मुँह के दीपक को लाई की ढेरी के ऊपर रख दें –

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मृत्युना पाश दण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीप दानात् सूर्यजः प्रीयता मिति ।।

अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों ।उक्त मन्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें –

ॐ यमदेवाय नमः । नमस्कारं समर्पयामि ।।

अब पुष्प दीपक के समीप छोड़ दें और पुनः हाथ में एक बताशा लें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए उसे दीपक के समीप छोड़ दें –

ॐ यमदेवाय नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।।

अब हाथ में थोड़ा-सा जल लेकर आचमन के लिये निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए दीपक के समीप छोड़ें –

ॐ यमदेवाय नमः । आचमनार्थे जलं समर्पयामि ।।

अब पुनः यमदेव को ‘ॐ यमदेवाय नमः’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें ।

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