नई दिल्ली(एजेंसी): बढ़ते हुए प्रदूषण को कम करने के लिए और अक्टूबर के अंत तक आशंकित हेल्थ इमरजेंसी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) ने सख्त निर्देश जारी कर दिए हैं. 15 अक्टूबर से 15 मार्च तक सोसायटीज और छोटे कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्सेज में डीजल, पेट्रोल या मिट्टी के तेल से चलने वाले जेनरेटर्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. प्रतिबंध ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत लगाया गया है. सीएनजी, पीएनजी और बिजली से चलने वाले जेनरेटर्स को छूट है.
हाई राइज सोसाइटी में रहने वाले परिवारों के पास पॉवर बैकअप न होने के चलते अब स्कूली बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज और घर से काम करने वाले लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. हांलांकि एलिवेटर, लिफ्ट, एक्सीलेटर और नर्सिंग होम और बाकि मेडिकल सर्विस को प्रतिबंध से बाहर रखा गया है.
लोगों की राय जानने के लिए एबीपी न्यूज की टीम नोएडा के अजनारा सोसाइटी होम्स 121 पहुंची. सोसाइटी के प्रेसिडेंट चक्रधर मिश्रा कहते हैं कि ‘हमारी सोसायटी में इंवर्टर भी लगाना मुश्किल होगा क्योंकि अभी वायरिंग जनरेटर के साथ मिलने वाली पॉवर सप्लाई के साथ जुड़ी है लेकिन इंवर्टर लगाने में बहुत वक्त और पैसा लगेगा, हमें बहुत बदलाव करने पड़ेंगे.’ अजनारा की वाइस प्रेसिडेंट गरिमा त्रिपाठी कहती हैं कि हमारी सोसायटी का जनरेटर यहां रहने वाले 1600 परिवारों के लिए आपूर्ति करता था लेकिन सीएनजी से चलने वाला जनरेटर इतने लोगों के लिए बिजली उत्पन्न नहीं कर पाएगा.
सोसायटी के सेक्रेटरी सर्वेश शर्मा कहते हैं कि हम लॉकडाउन के बाद से ऑफिस नहीं जा रहे हैं और घर से ही ऑफिस का सारा कारोबार संभाल रहे हैं. घर पर लाइट नहीं रहेगी तो लोग तो परेशान होंगे ही. पहले सरकार की गाइडलाइन में घर शामिल नहीं थे. हमारी सोसायटी में करीब दस लोगों के घरों में अस्पताल जैसी व्यवस्था है. उनके लिए मुश्किल हो सकती है अगर गलती से भी उनकी लाइट चली गई और जनरेटर का बैकअप नहीं चला तो. हमारे पास अभी कोई एक्शन प्लान नहीं है.
नोएडा की बहुमंजिला इमारत में रहने वाली रश्मि कहती हैं कि मेरा घर 18वीं मंजिल पर है. घर इतनी ऊंचाई पर होने के कारण अब भी दोपहर के वक़्त बेहद गर्म रहता है और जनरेटर की व्यवस्था ना होने पर गर्मी में बैठना पड़ेगा.हाई राइज सोसायटी में बिजली चौबीस घंटे बिजली अनिवार्य है , हमारे लिए कोई विकल्प सरकार को देखना चाहिए. पहली मंज़िल पर रहने वाले ललित चतुर्वेदी कहते हैं कि हर सर्दी के मौसम में कुछ ऐसे कदम उठाए जाते हैं लेकिन ये समाधान स्थायी नहीं हैं. सरकार को पराली से उत्पन्न होने वाले धुएं की जांच पड़ताल करनी चाहिए ना कि आम लोगों को इस तरह से परेशान करना चाहिए.