‘सम्यक दर्शन की साधना’ शिविर का चौथा दिन
रायपुर (अविरल समाचार). जिन्होंने अपने राग-द्वेष, कसाय आदि को खत्म कर दिया और जो अब आनंद में जी रहे हैं, उन्हें हम ‘अरिहंत’ कहते हैं। ‘अरि’ यानि शत्रु और ‘हंत’ अर्थात् हनन करने वाला। पहले वह आत्मा भी हमारे जैसी ही आत्मा थी, अपने भीतर के श़त्रुओं का नाश कर अब वह परमात्मा बन गई। जिसने अपनी आत्मा को शुद्ध कर लिया, जिसने अपनी आत्मा को दुःखों से मुक्त कर लिया, जिसने अपनी आत्मा को संसार के भटकाव से हटा लिया, जिसने अपनी आत्मा को राग-द्वेष करने से बचा लिया, उस आत्मा को हम ‘परमात्मा’ कहते हैं। वे संसार की वस्तुओं को जैसी हैं-वैसी ही जानते और मानते हैं। जिस वस्तु का जैसा स्वभाव है, उसी अनुरूप वे व्यवहार करते हैं। वे भलीभांति जानते हैं पानी गर्म है, मैं उस में अपना हाथ डालुंगा तो मेरा हाथ जल जाएगा। परमात्मा और हमारे ज्ञान में अंतर केवल यही है कि वे वस्तु को जैसी है उसे वैसा ही मानते-जानते हैं। जहां दुख है वहां दुख जानते हैं और जहां सुख है वहां सुख जानते हैं। हम इसके विपरीत आचरण करते हैं- हम जहां सुख है वहां तो मानते दुख हैं और जहां दुख है वहां मानते हैं सुख है। पूज्य गुरू भगवंत ने कहा- वास्तव में परमात्मा एक आदर्श पुरूष हैं। उक्ताशय के विचार जैन दादाबाड़ी सम्यक दर्शन की साधना शिविर के चौथे दिन अध्यात्म योगी महेन्द्र सागरजी महाराज ने व्यक्त किये.
शिविर के प्रथम सत्र में बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य शांति, सुख और आनंद से रहें। आज अभी यहीं इसी वक्त सुख, शांति चाहते हैं। तो इसके लिए आपको मन में जितनी भी समस्याएं उन्हें दूर करना होगा, दिमाग के सारी समस्याओं का स्वीच ऑफ कर दो। हमारे शत्रु कौन हैं, हमारी समस्याएं। परमात्मा ने एक के बाद एक अपनी सारी समस्याएं खत्म कर दीं, इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर लीं। इच्छाओं का कारण है कसाय-क्रोध, मान, माया, लोभ। और इन कसायों का कारण है राग और द्वेष। जिनसे आपका संपर्क है उनसे आपका कभी राग होता है तो कभी द्वेष। इच्छाओं का कारण संसार की वस्तुओं से जुड़ाव है, जुड़ाव का कारण केवल राग और द्वेष है। हम एक राग को छोड़ते हैं, फिर दूसरा राग पकड़ लेते हैं, इसका कारण है हमारा भ्रम। संसार की वस्तुओं में हमें मोह है-भ्रम है कि यह वस्तु सुखी करेगी, यह वस्तु दुख देगी। जिससे सुख मिलता है उससे जुड़ जाते हैं और जिससे दुख मिलता है उसे दूरी बना लेते हैं या उसे त्याग देते हैं। इस तरह राग-द्वेष से हमारा सतत् सम्पर्क चलता रहता है। यह हमारा भ्रम कैसे निकले? एक ही मार्ग है हमें सही ज्ञान मिले और उस सही ज्ञान के प्रति स्वयं की आस्था दृढ़ कर लें।
उन्होंने कहा कहा कि यदि हम उस ज्ञान की प्राप्ति करनी है, जिससे हमें उचित-अनुचित का पता लग जाए। ऐसा ज्ञान जिसके आने पर आपका राग-द्वेष चला जाए, संसार की इच्छाएं समाप्त हो जाएं। जिन्होंने अपने राग-द्वेष, कसाय आदि को खत्म कर दिया और जो अब आनंद में जी रहे हैं, उन्हें हम ‘अरिहंत’ कहते हैं।
स्वाध्याय और ध्यान का क्रम चलेगा
चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार प्रभारी तरूण कोचर, सुशील कोचर, शिविर प्रभारी निलेश गोलछा व अमित मुणोत ने बताया कि यह शिविर आगामी 22 सितम्बर तक प्रतिदिन दो सत्रों में प्रातः 8 से 11 बजे तक एवं दोपहर 2 से शाम 4 बजे तक संचालित हो रहा है। शिविर में पांच दिनों तक स्वाध्याय का और शेष तीन दिनों तक ध्यान का क्रम चलेगा।