पितृ पक्ष 14 से, पितरों को समर्पित हैं ये 15 दिन

पितृ पक्ष : जानिए कैसे मिलता है पितरों को भोजन

ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे

(अविरल समाचार). किसी ने हमारे हित के लिये कुछ किया तो हमारा शीश उसके सामने झुक जाता है| हम उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हैं| इस कृतज्ञता से ही श्रद्धा का भाव पल्लवित होता है, जो अनवरत बना रहता है| हम सभी ईश्वर के प्रति तो श्रद्धा का भाव रखते ही हैं, क्यो कि वह हम सभी की दृष्टि में सर्वोपरि और सर्व शक्तिमान है| इसी तरह हम अपने बडे बुजुर्गों का भी सम्मान करते हैं, उनके प्रति आदर का भाव हम सभी के मन में होता है| उनके अनुभव और उनके द्वारा दी गई शिक्षा ही हमारी सफलता का आधार बनती है| हमारे परिवार के वृद्ध सदस्य सदैव हमारे साथ नही होते, प्रकृति के नियम के अनुरूप वे हमसे बहुत पहले शरीर छोड चुके होते हैं| शास्त्रों द्वारा मनुष्य के लिए तीन प्रकार के ऋण अर्थात कर्त्तव्य बताए गए हैं- देवऋण, ऋषिऋण तथा पितृऋण। अतः स्वाध्याय द्वारा ऋषिगण से, यज्ञों द्वारा देवऋण से तथा श्राद्घ एवं तर्पण द्वारा पितृऋण से मुक्ति पाने का रास्ता बतलाया गया है। इन तीनों ऋणों से मुक्ति पाए बिना व्यक्ति का पूर्ण विश्वास एवं कल्याण होना असंभव है।

भारतीय संस्कृति अत्यंत प्राचीन है, और इसके सिद्धांत पूर्णत: वैज्ञानिक हैं| अपने पूर्वजो से मनुष्य का आत्मिक सम्बंध बना रहे और उनकी शिक्षाओं का समय समय पर स्मरण आता रहे इसी दृष्टिकोण से पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिये आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावास्या तक के पंद्रह दिन पितरों याने पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिये रखें गए हैं| इसे पितृ पक्ष का नाम दिया गया है| शास्त्रों में कहा गया है,’श्रद्धया:इदं श्राद्धम’, अर्थात जो श्रद्धा से किया जाये वो श्राद्ध है| पितृ पक्ष में हम अपने पितृओं के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त कर उन्हे विश्वास दिलाते हैं कि हम आपके दर्शाए गए मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं|
15 दिन का है पितृ पक्ष
वैसे तो शास्त्रों में उल्लेखित है कि पितृ पक्ष्, भाद्रपद मास की पूर्णिमा याने पौष्टपदी पूर्णिमा से ही प्रारम्भ हो जाता है| इस तरह पितृ पक्ष 16 दिनों का होता है, लेकिन इस वर्ष षष्टि तिथि लोप हो जाने के कारण पितृ पक्ष 15 दिनों का हैं|

कौवा को अर्पित भोजन, मिलता है पितरों को : कथा

श्राद्ध पक्ष में कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है। इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है। एक कथा है कि, इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। त्रेता युग की घटना कुछ इस प्रकार है कि, जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आँख को क्षतिगग्रस्त कर दिया था। जयंत ने अपने कृत्य के लिये क्षमा मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है।

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