जन्माष्टमी : इस वर्ष श्री वत्स और गज केसरी योग में मनेगी

जानिये कैसे करें श्री कृष्ण का पूजन

ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे

भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का ठीक मध्य रात्रि में अवतरण हुआ था| कारागार में मध्य रात्रि के समय अत्यंत कष्ट में भी प्रसन्न चित्त माता देवकी ने उन्हे जब जन्म दिया तो वे अवगत थीं कि वे प्रकृति के नियंता को पृथ्वी पर जन्म देने जा रही हैं| पिता ने जब एक टोकरी में डाल कर यमुना में बहाया तो वे भी अवगत थे कि सर्वकारणो के कारण साक्षात विष्णु को किसी एक परिवार तक सीमित नही रखा जा सकता| ईश्वर को पृथ्वी पर लाने वाली माँ देवकी और पिता वसुदेव ने कष्टों को सह कर कठिन साधना की और ईश्वर की इस लीला का प्रमुख कारण बने|

शुभ योगों की जन्माष्टमी

इस वर्ष जन्माष्टमी मनाये जाने की तिथि को लेकर संदेह है| 23 तारीख को प्रात: 8.08 बजे से अष्टमी लग रही है | याने 23 तारीख की रात्री 12 बजे अष्टमी तिथि रहेगी |लेकिन रोहिणी नक्षत्र नहीं रहेगा| वैसे तो जन्माष्टमी दो तरह की हो सकती है| ‘निर्णयामृत’ और ‘तिथितत्व’ नामक ग्रंथ कहते है, कि जन्माष्टमी या तो रोहिणी नक्षत्र युक्त या बिना रोहिणी नक्षत्र वाली हो सकती है| बिना रोहिणी नक्षत्र वाली अष्टमी तिथि यदि हो तो जिस मध्य रात्रि को अष्टमी तिथि हो तो दूसरे दिन रात्रि के समय जन्माष्टमी मनाई जानी चाहिये| शुक्रवार 23 तारीख कों रात्रि अष्टमी तिथि है लेकिन रोहिणी नक्षत्र नहीं है | अत: 24 तारीख की मध्यरात्रि को ही जन्माष्टमी मनाई जायेगी| शनिवार और चन्द्र प्रधान रोहिणी नक्षत्र की युति होने से श्री वत्स योग बन गया है| 24 तारीख कों मध्य रात्रि 12.00 बजे उच्च का चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में उसी तरह है जैसा कृष्ण जन्म के समय था| गज केसरी योग होने से यह योग और उत्तम हो गया है| इस योग में कृष्ण जन्मोत्सव मनाना कृष्ण भक्तों के लिए अविस्मरणीय होगा| 23 तारीख को स्मार्त याने शैव मतावलंबी और 24 को वैष्णव मतावलंबी जन्माष्टमी मनाएंगे तो श्रेष्ठ होगा |

इस तरह करें पूजन

जन्माष्टमी के दिन प्रात:काल भगवान श्रीकृष्ण का नाम स्मरण करते हुए हाथ में पीले चावल लेकर पूजन और उपवास का संकल्प लें। यदि आप अपने घर में झूला स्थापित कर, पूजा करना चाहें तो दोपहर में ही माँ देवकी का स्मरण कर झूला स्थापित कर दें।
रात्रि 12 बजे बाल कृष्ण की प्रतिमा को जल, दूध, चन्दन युक्त जल से स्नान करवायें तथा भगवान को वस्त्र और श्रृंगार इत्यादि अर्पित कर के भोग लगायें। सुगन्धित पदार्थों से युक्त आरती करें। रात्रि जागरण कर ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।

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