लेह: चीन सीमा पर चल रहे तनाव के बीच खबर है कि बीआरओ ने पूर्वी लद्दाख में दुनिया की सबसे ऊंची सड़क का काम लगभग पूरा कर लिया है. ये रोड दुनिया के सबसे उंचे दर्रे, मरसिमक-ला से गुजरती है और पेंगोंग-त्सो झील से सटे लुकुंग और फोबरांग को एलएसी के हॉट-स्प्रिंग से जोड़ती है. हॉट-स्प्रिंग एलएसी का वही विवादित इलाका है जहां इनदिनों भारत और चीन के सैनिकों के बीच टकराव चल रहा है. एबीपी न्यूज के पास इस सड़क की एक्सक्लुजिव तस्वीरें हैं.
सूत्रों के मुताबिक, मरसिमक-ला रोड की कुल लंबाई 75 किलोमीटर है और ये करीब 18,953 फीट की ऊंचाई तक जाती है. सरकार ने वर्ष 2017 में डोकलम विवाद के तुरंत बाद बीआरओ यानि बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन कए इस सड़क को बनाने की मंजूरी दी थी. जानकारी के मुताबिक, कुछ जगह पर ब्लैक-टॉपिंग को छोड़कर पूरी सड़क लगभग बनकर तैयार है. ऐसे में ये दुनिया की सबसे ऊंची ‘मोटरेबल-रोड’ बन गई है.
इसके बनने से सैनिकों की मूवमेंट, पैंगोंग त्सो लेक से हॉट-स्प्रिंग तक बहुत तेजी से हो सकती है. पहले सैनिकों को यहां ट्रैकिंग करके जाना पड़ता था, जिससे एलएसी के पैट्रोलिंग पॉइंट (पीपी) नंबर 17 तक पहुंचने में काफी वक्त लगता था. लेकिन इस सड़क के बनने से सैनिक चंग-चेनमो नदी तक सड़क के जरिए पहुंच सकते हैं, और वहां से ट्रैकिंग करके जल्द ही हॉट-स्प्रिंग पहुंच सकते है, जो नजदीक ही है.
हॉट-स्प्रिंग का पीपी नंबर 17 वही जगह है जहां पिछले दो महीने से भारत और चीन के सैनिकों के बीच फेसऑप चल रहा था. हालांकि, 30 जून को दोनों देशों के कोर कमांडर स्तर की बैठक के बाद पीपी-17 से दोनों देशों के सैनिक 2-2 किलोमीटर पीछे हट गए थे, लेकिन अभी भी पूरी पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल (यानि) एलएसी पर हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं.
आपको बता दें कि अभी तक दुनिया की सबसे ऊंची रोड, खरदुंगला पास (दर्रे) से होकर गुजरती की, जो करीब 18,380 फीट की ऊंचाई पर है. ये सड़क भी लद्दाख में है और नुब्रा वैली के जरिए लेह को सियाचिन बेस कैंप से जोड़ती है. दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची सड़क भी पूर्वी लद्दाख में है. ये लेह को चांगला पास यानि दर्रे (ऊंचाई करीब 17,586 फीट) से दुरबुक के जरिए गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो लेक से जोड़ता है.
आपको बता दें कि एलएसी के बेहद करीब वाले इलाकों में भारत द्वारा सड़क और दूसरा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने से ही चीन भन्नाया हुआ है. हालांकि, चीन अपने क्षेत्र में काफी पहले ही सड़क और हाईवे का जाल बिछाए हुए है, जिससे चलते उसके सैनिक एलएसी तक सैन्य-गाड़ियों तक आते हैं,लेकिन अब उसे भारत के निर्माण-कार्यों से मुश्किल आ रही है.
कुछ दिनों पहले एबीपी न्यूज से बात करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य, लेफ्टिनेंट जनरल एस एल नरसिम्हन ने भी कहा था कि भारत द्वारा अपने क्षेत्र में सड़क बनाने से ही चीन सेना से टकराव की स्थिति ज्यादा पैदा हो रही है. क्योंकि अब दोनों देशों के सैनिक तेजी से एलएसी पर पैट्रोलिंग के लिए पहुंच जाते हैं. आमना सामना ज्यादा होने से ही टकराव की नौबत ज्यादा आ रही है. जबकि पहले चीन के सैनिक ही ऐसा कर पाते थे.
इस बीच सीमा पर डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया के दूसरे चरण के लिए भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर की चौथे दौर की बैठक पूरे 14 घंटे चली. सुबह 11 बजे शुरू हुई बैठक देर रात 2 बजे तक चली. सूत्रों के मुताबिक, मीटिंग में एलएसी पर सभी जगह पर डिसइंगेजमेंट पर बात हुई. एलएसी पर दोनों देशों की सेनाओं के हेवी बिल्ट-अप को कम करने के साथ साथ फिंगर एरिया और डेपसांग प्लेन्स पर चर्चा हुई.
भारत ने चीनी सेना के फिंगर एरिया नंबर 4 की रिज-लाइन पर मौजूद चीनी सैनिकों का मुद्दा भी मीटिंग में उठाया. इसके अलावा फिंगर 8 से फिंगर 5 तक भी चीनी सेना बड़ी तादाद में मौजूद है. दोनों देशों की सेनाओं के बीच टकराव करने के लिए बेहद जरूरी है कि चीनी सैनिक यहां अपना जमावड़ा कम करे. ये भी भारतीय पक्ष ने कहा.
दौलत बेग ओल्डी यानि डीबीओ के करीब डेपसांग प्लेन्स में भी भारत और चीन के सैनिकों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है. डेपसांग प्लेन्स का मुद्दा भी इस मीटिंग का हिस्सा था. इसके अलावा एलएसी पर दोनों देशों के सैनिकों की संख्या को कम करने का मुद्दा भी इस मीटिंग के एजेंडे में है. माना जा रहा है भारतीय सेना कोई आधिकारिक बयान जारी करे मीटिंग को लेकर.