नई दिल्ली (एजेंसी)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) 15 जुलाई को चंद्रयान-2 को लॉन्च करेगा। इससे ठीक एक हफ्ते पहले इसरो ने अपनी वेबसाइट पर चंद्रयान की तस्वीरें जारी की हैं। लगभग एक हजार करोड़ रुपये की लागत वाले इस मिशन को जीएसएलवी एमके-3 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। इस स्पेसक्राफ्ट का वजन 3800 किलो है। जिसमें 3 मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) होंगे। इसरो के अध्यक्ष डॉ. के सिवान ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईआईएसटी) के सातवें दीक्षांत समारोह में कहा कि चंद्रयान-2 को प्रक्षेपण यान के साथ एकीकृत कर दिया गया है।
के सिवान ने कहा, ‘चंद्रयान-2 के जरिए इसरो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जा रहा है जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया है। अगर हम उस जोखिम को लेते हैं तो वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय को लाभ होगा। जोखिम और लाभ जुड़े हुए हैं।’ चंद्रयान छह या सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के पास लैंड करेगा। ऐसा होते ही भारत चांद की सतह पर लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन जाएगा।
इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन अपने यानों को चांद की सतह पर भेज चुके हैं। हालांकि कोई भी देश अबतक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास यान नहीं उतार पाया है। चंद्रयान मिशन को जीएसएलवी एमके-3 रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इसका वजन करीब 6000 क्विंटल है। पूरी तरह से लोडेड यह रॉकेट पांच बोइंग जंबो जेट के बराबर है। यह अंतरिक्ष में काफी वजन ले जाने में सक्षम है।
चंद्रयान-2 के विशेष रोवर ‘प्रज्ञान’ के लिए कई तकनीक आईआईटी कानपुर में तैयार की गई हैं। इसमें सबसे अहम है मोशन प्लानिंग। मतलब चांद की सतह पर रोवर कैसे, कब और कहां जाएगा? इसका पूरा खाका आईआईटी कानपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के सीनियर प्रोफेसर केए वेंकटेश व मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सीनियर प्रोफेसर आशीष दत्ता ने मिलकर तैयार किया है।
भारत के लिए यह गौरव का बात है कि 10 साल में दूसरी बार चांद पर मिशन भेज रहा है। चंद्रयान-1 2009 में भेजा गया था। हालांकि, उसमें रोवर शामिल नहीं था। चंद्रयान-1 में केवल एक ऑर्बिटर और इंपैक्टर था जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा था। इसको चांद की सतह से 100 किमी दूर कक्षा में स्थापित किया गया था।