नई दिल्ली(एजेंसी): किसानों से जुड़े विवादित बिलों पर गुरुवार को लोकसभा में हुए सियासी महाभारत से अचानक ये मामला सुर्ख़ियों में आ गया. लोकसभा से पारित हो चुका ये बिल अब राज्यसभा में जाएगा. आइए देखते हैं कि अगर राज्यसभा के सभी सदस्य वोट करें और सभी पार्टियों का रुख लोकसभा जैसा ही रहे तो बिल का क्या होगा?
लोकसभा में तो दोनों बिल आसानी से ध्वनिमत से पारित हो गया क्योंकि सदन में मोदी सरकार के पास ज़बर्दश्त बहुमत है. लेकिन राज्यसभा में मोदी सरकार के पास बहुमत नहीं है. हर बार उसे बिल पारित करवाने के लिए उन्य दलों पर निर्भर रहना पड़ता है. किसी भी विवादित बिल पर उसे उन दलों का सहारा मिलता रहा है जो न तो एनडीए का हिस्सा हैं और न ही यूपीए का.
पहले बात एनडीए की, अगर लोकसभा में हुई बहस के दौरान पार्टियों का रुख़ राज्यसभा में भी वही रहता है तो एनडीए के पास फ़िलहाल 122 सांसदों का समर्थन हासिल है. जो बहुमत से 1 ज़्यादा है. इनमें एनडीए के सहयोगी दल तो शामिल हैं ही, लेकिन बिल को समर्थन देकर सबसे ज़्यादा चौंकाया है शिवसेना ने.
मोदी सरकार के लिए ये सुकून की बात रही कि उनकी अपनी सहयोगी अकाली दल ने तो बिल पर साथ छोड़ दिया लेकिन शिवसेना जैसी विरोधी साथ खड़ी हो गई. पार्टी की ओर से बहस में भाग लेने वाले दोनों सांसदों ने कुछ चिंताएं जगाते हुए बिल का स्वागत किया. हिंगोली से सांसद हेमंत श्रीराम पाटिल ने तो बिल का समर्थन किया था. आइए देखते हैं कि सरकार के पास कितना आंकड़ा है.
बीजेपी- 86 , एआईएडीएमके- 9 , जेडीयू- 5 , (बीपीएफ, एमएनएफ, एनपीपी, एपीएफ, एलजेपी, आरपीआई, एसडीएफ) – 7, (निर्दलीय और नामांकित)- 6, शिवसेना- 3 और वाईएसआर कांग्रेस- 6
हालांकि लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया और मत विभाजन की नौबत नहीं आई. अगर मत विभाजन होता तो शिवसेना का रुख़ देखना दिलचस्प होता. एक बात ज़रूर साफ़ है कि शिवसेना या तो समर्थन में वोट करती या फिर वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लेती. बिल का विरोध शायद नहीं कर पाती.
कांग्रेस- 40 , टीएमसी- 13, समाजवादी पार्टी- 8, आरजेडी- 5, आम आदमी पार्टी- 3, (एमडीएमके, सीपीआई, मुस्लिम लीग, जेडीएस, जेएमएम, केरल कांग्रेस एम, एलजेडी, पीएमके)- 8 , एनसीपी- 4, सीपीएम- 5, डीएमके- 7, अकाली दल- 3, पीएडीपी- . कांग्रेस और यूपीए के लिए सुकून की बात ये रही कि बिल ने एनडीए में दरार सामने आ गई. अकाली दल ने बिल का विरोध कर संसद में मोदी सरकार के लिए फ़जीहत खड़ी कर दी, जो कांग्रेस के लिए सियासी तौर पर एक जीत कही जा सकती है.
हालांकि दोनों पक्षों को उम्मीद उन दलों से होगी जो निष्पक्ष हैं. यानि उनका रुख़ साफ़ नहीं है कि मतदान की स्थिति में वो क्या करेंगे. लोकसभा में हुई बहस को अगर पैमाना माना जाए तो इन दलों में से किसी ने भी बिल का न तो पूरी तरह समर्थन ही किया और न ही विरोध. इसलिए ऐसी सम्भावना जताई जाती है कि अगर राज्य सभा में ध्वनिमत की जगह मत विभाजन की नौबत आती है तो ये सभी पार्टियां या तो वॉक आउट करेंग या फिर मत विभाजन में हिस्सा ही नहीं लेंगी.
ऐसे में साफ़ है कि लोकसभा के मुक़ाबले राज्यसभा में मोदी सरकार को भले ही बहुमत नहीं हो, लेकिन इस बिल को समर्थन दे रही पार्टियों को मिलाकर बहुमत के बिल्कुल क़रीब पहुंच जाती है. लिहाज़ा लोकसभा की तरह ही राज्यसभा में भी बिल पारित करवाने में मोदी सरकार के सफ़ल रहने की संभावना ज़्यादा.