कर्नाटक सियासी बवाल : देश का लोकतंत्र किस ओर..

(अविरल समाचार). कर्नाटक पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं ? किसी भी समय कांग्रेस की सरकार ध्वस्त हो सकती हैं. कमोबेश गोवा में भी यही स्थिति बन रही हैं ? शायद इसके बाद मध्यप्रदेश का नंबर लग जाए ? भाजपा का डंका केंद्र के साथ-साथ अब राज्यों में भी बजने लगा हैं. ऐसा प्रतीत होता हैं मानो भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही हैं. बुद्धजीवियों के मध्य यह सवाल कौंध रहा हैं की क्या देश का लोकतंत्र खतरे में हैं ?

भाजपा एक के बाद एक कांग्रेस शासित सभी राज्यों को अपने टारगेट में ले रही हैं भले ही उनके शीर्ष नेता यह कहते हुए नही थक रहे हैं की कांग्रेस की सरकारें अपने ही बोझ और अंतर्कलह से गिर रही हैं. सच्चाई तो जनमानस के सामने साफ़ दिखाई दे रही हैं. यह कहने कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी की कांग्रेस ने भी अपने ६० वर्षों के केंद्र के शासनकाल और राज्यों में अपनी सरकरों को गठित करने में ऐसे ही हथकंडे अपनाए थे. उस समय भाजपा के नेता चीख-चीख कर इसका प्रखर विरोध करते नजर आते थे. अब उनका समय आया हैं तो वे क्यों चुकेंगे.

आज की स्थिति में भाजपा के पास धनबल, बाहुबल और केंद्र की सरकार का बड़ा हथियार हैं. राज्यों की सरकारों को गिरना निःसंदेह लोकतंत्र को कहीं न कहीं चुनौती देने वाला दीखता हैं. केंद्र में कांग्रेस 52 सीटों पर सिमट कर रह गई हैं. इससे पराभव कांग्रेस का और क्या हो सकता हैं. अब कांग्रेस को अपने संगठन पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए. राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर पराजय की जिम्मेदारी का निर्वहन कर दिया हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुसार कांग्रेस अभी अपने सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रही हैं. राहुल गांधी के इस्तीफे से क्या होगा ? कैसे उनका इस्तीफा स्वीकार होने के बाद कांग्रेस एकजुट रह पाएगी यह सबसे बड़ा सवाल हैं ? आजतक भले ही वंशवाद का आरोप लगता रहा हो गांधी, नेहरु परिवार के नेतृत्व से कांग्रेस कम से कम एकजुट तो रह सकी. अब कांग्रेस को अपनी राज्य सरकारों को बचाने का उपक्रम करना चाहिए.  

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