मुंबई (एजेंसी)। 1989 में पहली बार शिवसेना और भाजपा ने गठबंधन किया था। तब से यह राजनीतिक रिश्ता जारी है। भाजपा को पिछले कुछ समय से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने जहरबुझे तीरों से जमकर छकाने के बाद एक बार फिर चुनाव में साथ जाने का निर्णय लिया है। अब तक महाराष्ट्र में अपने लिए बड़े भाई की भूमिका की इच्छा रखने वाली शिवसेना को समझौते के तहत कुल 48 सीटों में से 23 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी 25 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों के कुछ ही महीने बाद होते हैं, लिहाजा 288 सीट सदस्यीय विधानसभा में दोनों दल अपने सहयोगियों को सीट देने के बाद बची हुई सीट पर भी बराबर की संख्या में चुनाव लड़ेंगे। शिवसेना और भाजपा के बीच में तालमेल की यह घोषणा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उद्धव ठाकरे की मौजूदगी में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक प्रेस कांफ्रेंस में की।
अमित शाह ने कई अवसरों पर कहा कि उन्हें उद्ध ठाकरे, शिवसेना के नेताओं के बयान या सामना में छप रहे अंश पर कुछ नहीं कहना है। उन्होंने इसके बाबत पार्टी के नेताओं को भी संयम बरतने की सलाह दी थी। अमित शाह इस बारे में बस एक बात दोहरा रहे थे, कि भाजपा के सहयोगी उसके साथ रहने वाले हैं। शिवसेना भी रहेगी। हम महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव शिवसेना के साथ मिलकर लड़ेंगे।
माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में भाजपा की मौजूदा राजनीतिक स्थिति ने उसे जरूरत से कहीं ज्यादा समझौतावादी बनाया है। राज्य में कांग्रेस और एनसीपी के बीच में चुनावी गठजोड़ हो जाने के बाद भाजपा के पास अपनी राजनीतिक ताकत को सम्मान जनक स्थिति में बनाए रखने के लिए इसके अलावा कोई और चारा नहीं था।
यह लाख टके का सवाल है। शिवसेना-भाजपा के बीच में रिश्ते का पेचीदा पेच है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने दल का सम्मान चाहते हैं। वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बहुत संभल कर चल रहे हैं। महाराष्ट्र के एक सूत्र की माने तो भाजपा अध्यक्ष ने विधानसभा चुनाव बाद सरकार बनने की स्थिति में ढाई साल-ढाई साल का बराबरी का प्रस्ताव दिया है। यानी एक बार ढाई साल तक भाजपा का मुख्यमंत्री और फिर शिवसेना का।
लेकिन शिवसेना इससे सहमत नहीं है। शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे चाहते हैं कि सीएम का पद शिवसेना के पास रहे। यहां तक सीटों की संख्या में भाजपा के बाजी मारने के बाद भी सीएम शिवसेना को हो। भाजपा केंद्र की सत्ता संभाले और राज्य में शिवसेना मुख्यमंत्री का पद। इस मुद्दे पर भाजपा और शिवसेना के प्रमुख ने अभी अधिकारिक रूप में कोई बयान भी नहीं दिया है। सूत्र बताते हैं कि इस अभी कोई फार्मूला तय होने की स्थिति बनी हुई है।
शिवसेना लोकसभा चुनाव 2014 में शिवसेना के साथ थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में दोनों दल बिछुड़ गए थे। भाजपा ने अपने दम पर राज्य विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल कर लिया था। हालांकि इसके बाद भी भाजपा ने शिवसेना के साथ अपने संबंधों को निभाने की पहल की। भाजपा और शिवसेना को साथ बनाए रखने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिश रंग लाई।
प्रधानमंत्री और शाह ने खुद पहल करते हुए कई बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को दिल्ली बुलाकर चर्चा की। अमित शाह कई बार उद्धव ठाकरे से भी मिले और कई दौर की चर्चा के बाद सहमति बन पाई। हालांकि अभी भी भाजपा और शिवसेना के बीच में सहमति बन जाने के बाद भी कई मुद्दे अनसुलझे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिवसेना-बीजेपी गठबंधन पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट में लिखा कि शिवसेना के साथ भाजपा का गठबंधन राजनीति से परे है और मजबूत भारत की इच्छा से प्रेरित है। साथ में चुनाव लड़ने का फैसला एनडीए को मजबूत बनाता है। मुझे विश्वास है कि हमारा गठबंधन महाराष्ट्र की पहली और एकमात्र पसंद होगी। पीएम मोदी ने आगे ट्वीट में लिखा कि अटल बिहारी वाजपेयी और बाल ठाकरे के विचारों से प्रेरित, बीजेपी-शिवसेना गठबंधन महाराष्ट्र के लोगों के कल्याण के लिए काम करना जारी रखेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि राज्य एकबार फिर ऐसे जनप्रतिनिधि चुने जो विकासोन्मुखी, भ्रष्टाचार मुक्त और भारतीय संस्कृति पर गर्व करने वाले हों।