सोमवार को पड़ने वाली महाशिवरात्रि को बन रहा हैं विशेष स्वार्थ सिद्धि योग

जानिये किस प्रकार पूजा करने से सिद्ध होंगे कार्य

ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे

रायपुर (अविरल समाचार). इस बार शिव रात्रि पर दुर्लभ संयोग बन रहा हैं. यह महाशिवरात्रि 4 मार्च, सोमवार को पड़ रही हैं. इस दिन दुर्लभ स्वार्थ सिद्धि योग बन रहा हैं. इस दिन शिव जी की पूजा अर्चना करने से महादेव का शुभ आशीष मिलने के संकेत भी मिल रहें है। आइये जानते हैं किस प्रकार करें पूजन अर्चन जिससे सिद्ध होंगे आपके कार्य.

ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार सोमवार 4 तारीख  को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि सायंकाल 4.28 बजे तक है, तत्पश्चात चतुर्दशी तिथि है। इसी दिन चन्द्र प्रधान श्रवण नक्षत्र है, जो की दोपहर 12.09 बजे तक ही है। शास्त्रों में चतुर्दशी और श्रवण नक्षत्र की युति को ही शिवरात्रि पर्व मनाये जाने का प्रावधान है, लेकिन इस बार यह युति नहीं बन पा रही है| लेकिन ‘तिथि निर्णय’ ग्रन्थ  में वर्णित है कि, “ प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या शिव रात्रिश्चतुर्दशी” अर्थात उदय कालीन त्रयोदशी और रात्रिकाल की चतुर्दशी हो तो शिवरात्री मनाना श्रेष्ठ है|  सोमवार  को चन्द्र प्रधान नक्षत्र की युति होने से सर्वार्थ सिद्धि योग रूपी यह दिन शिव जी की कृपा प्राप्ति और ऐश्वर्य प्राप्ति का दुर्लभ अवसर बन गया है। इस दिन सिद्धि योग भी है| प्रात:कालीन गोचर में सूर्य और चन्द्र का लग्नस्थ होना और लग्नेश शनि का उच्चस्थ होकर भाग्य भाव में होना कर्मशील व्यक्ति को शिव का शुभ आशीष मिलने के संकेत भी दे रहा है।

जय जय जय गिरिजाधीशा

शिव महिम्न: स्त्रोत्र में प्रश्न है, “ तव तत्वं न जानामि, की दृषोसि महेश्वर:” अर्थात आप कैसे दिखते हैं शिव? हम आपका स्वरूप नही जानते। स्वयं शिव इस प्रश्न का उत्तर इस तरह देते हैं: “ या दृषोसि महादेव तादृषाय नमो नम:” अर्थात “मैने आपको दृष्टि दी है आप जिस तरह, जिस स्वरूप में मुझे देखना चाहते हैं देख लिजिये”। स्पष्ट संकेत है कि संसार में चल, अचल सब कुछ शिव ही है। समस्त आकारों के सृजनकर्ता शिव हैं तो स्वयं निराकार भी शिव ही हैं। अभिव्यक्ति के लिये स्वर के कारक महादेव स्वयं हैं और परम शांति के उद्भवकर्ता शिव ही हैं। स्वयं जटाजूट धारण करने वाले और विष प्रेरित सर्प को आभुषण के रूप में धारण करने वाले शिव सभी ऐश्वर्य के अधिष्ठाता देव हैं। सभी दिशाओं के स्वामी,जल थल, आकाश और यहाँ तक कि पाताल के स्वामी भी शिव ही हैं।शिवजी ने अपनी अर्धांगिनी के रूप में माँ आदि शक्ति का वरण किया है | शास्त्रों में वर्णित है की शिव सत्य स्वरुप हैं| और माँ अदि शक्ति शक्ति स्वरूपा हैं| परम सत्य शिव ने शक्ति का वरण कर के संकेत दिया है की सत्य और शक्ति एक दुसरे के बगैर अधूरे हैं| संक्षेप में यदि कहें तो, ‘जो शिव नही है वह शव है’, यह कहना सबसे सही होगा।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यदि देखा जाये तो तो विश्व की सबसे प्राचीन सिन्धु घाटी की सभ्यता, जो कि मनुष्य के अस्तित्व का प्राचीनतम प्रमाण है, उसमे भी उत्खनन के समय जो अवशेष मिले उनमे पशुपति शिव की कई प्रतिमाएं और आकृतियों मिली, जो इस तथ्य को प्रमाणित करती हैं कि मनुष्य के सृजन के साथ ही शिव की आराधना प्रारम्भ हो गई थी अर्थात शिव ही आराधना की सबसे प्राचीनतम कड़ी है।

समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष का प्राकट्य हुआ तब ब्रम्हाण्ड के अस्तित्व पर ही संकट आ गया, इसी कठिन घड़ी में भोलेनाथ भगवान शिव ने सभी के कल्याण और रक्षा के लिये उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया| इसका बहुत सरल सा अर्थ यह है कि मनुष्य के मन में चल रहे अच्छे और बुरे विचारों मंथन से यदा कदा त्रुटियां हो जाती हैं| उन त्रुटियों का बडा ही सहज उपाय यह है कि शिव जी को उन सभी विष रूपी त्रुटियों को समर्पित कर क्षमा याचना कर लें तो निश्चित ही जीवन सुखमय हो जाता है|


महाशिवरात्रि में शिवजी का ध्यान मंत्र

ध्यायेन्नित्यम महेशम रजत गिरिनिभम चारुचंद्रा वतंसम,

रत्ना कल्पोज्ज्वल्लंग परशु मृगवरा भीति हस्तम प्रसन्नम ||

पद्मासीनम समंतात स्तुतम मरगणैर व्याघ्र कृतिम वसानम,

विश्वाध्यम विश्व बीजम निखिल भयहरम पंच वक्त्रम त्रिनेत्रम||

अर्थात इस जगत के आधार,समस्त रोग और शोक से भयमुक्त करने वाले,चन्द्र कांति वाले पद्मासन मे बैठे भगवान शिव का ध्यान और इस मंत्र का प्रतिदिन उच्चारण मात्र सभी कष्टों से मुक्ति दिलाता है।


राशी के अनुसार करें शिवजी को प्रसन्न

सोमवार को शिवरात्रि के दिन शिवजी का, राशी के अनुसार, एक निश्चित मंत्र का लगभग 5 मिनट उच्चारण करते हुए, निश्चित सामग्री से अभिषेक करने से जीवन में आ रही बाधाओं का समाधान तो होता ही है, साथ ही सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है:

राशी                   मंत्र                                         अभिषेक सामग्री

मेष             ऊँ ह्रीं अधोक्षजाय साम्ब सदाशिवाय नम:               केसर दूध

वृषभ          ऊँ ह्रीं अम्बिका नाथाय साम्ब सदाशिवाय नम:        मिश्री युक्त दूध

मिथुन        ऊँ ह्रीं श्रीकंठाय साम्ब सदाशिवाय नम:                   गन्ने का रस

कर्क          ऊँ ह्रीं भक्तवत्सलाय साम्ब सदाशिवाय नम:            गाय का दूध

सिह          ऊँ ह्रीं पिनाकिने साम्ब सदाशिवाय नम:                   अनार का रस

कन्या        ऊँ ह्रीं शशि शेखराय साम्ब सदाशिवाय नम:             बेल का शर्बत

तुला          ऊँ ह्रीं शम्भवाय साम्ब सदाशिवाय नम:                   नारियल का पानी

वृश्चिक       ऊँ ह्रीं वामदेवाय साम्ब सदाशिवाय नम:                 पंचामृत

धनु          ऊँ ह्रीं सध्योजाताय साम्ब सदाशिवाय नम:                गुलाब जल

मकर        ऊँ ह्रीं नील लोहिताय साम्ब सदाशिवाय नम:            काले अंगूर का रस

कुम्भ       ऊँ ह्रीं कपर्दिने साम्ब सदाशिवाय नम:                 मोंगरे का इत्र

मीन         ऊँ ह्रीं विष्णु वल्लभाय साम्ब सदाशिवाय नम:         बेलपत्र और दूध

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