नई दिल्ली(एजेंसी): ऐसे वक्त में जब कंपनियों को पूंजी की सख्त जरूरत है तो आईपीओ मार्केट सूना नजर आ रहा है. इस कैलेंडर वर्ष में सिर्फ दो आईपीओ आए हैं. बीएसई और एनसई में इस साल अब तक एसबीआई कार्ड एंड पेमेंट सर्विसेज का आईपीओ आया और उसके बाद रोजारी बायोटेक का. एमएसएमई कंपनियों का आईपीओ बजार फीका रहा. इस साल अब तक 17 एमएसएमई कंपनियों के आईपीओ आए और इनसे सिर्फ 115 करोड़ जुटाए गए. पिछले साल 51 आईपीओ आए थे और इनसे 750 करोड़ रुपये जुटाए गए थे. बाजार में पर्याप्त लिक्विडिटी है और एफपीआई से पैसा आ रहा है. लेकिन कंपनियां आईपीओ बाजार में उतरने से हिचक रही हैं. आखिर क्यों?
दरअसल, एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब बाजार में उतार चढ़ाव हो और इनवेस्टर सेंटिमेंट गिरा हुआ हो तो आईपीओ मार्केट फीका रहना स्वाभाविक है. सितंबर 2008 से जून 2009 के बीच भी ऐसा ही हुआ था, जब सिर्फ तीन कंपनियां आईपीओ मार्केट में आई थीं. वह दौर सब-प्राइम संकट से उपजे वित्तीय संकट का था.
विशेषज्ञों का मानना है कि इस वक्त जब बड़ी और मजबूत रिकार्ड वाली कंपनियां बाजार में नहीं उतर रही हैं तो छोटी कंपनियों के लिए आईपीओ में उतरना जोखिम लेने की बात है. उनका यह भी कहना है कि प्राइमरी मार्केट, सेकेंडरी मार्केट की ही स्थिति को दर्शाता है. इसलिए सेकेंडरी मार्केट में हालात बेहतर हुए बगैर आईपीओ मार्केट में रौनक नहीं आएगी. उनका कहना है कि कोविड-19 का इलाज आने के बाद इकनॉमी पूरी तरह खुलने की स्थिति में भी आईपीओ बाजार में सक्रियता बढ़ेगी और इसे निवेशकों का समर्थन मिलेगा. इस वक्त उन सेक्टरों की कंपनियों से आईपीओ की उम्मीद करना बेकार है, जो कोरोनावायरस संक्रमण से मुश्किल में हैं. इस वक्त जो कंपनियां मार्केट में लिस्ट होना चाहती हैं उन्हें अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा.