नई दिल्ली(एजेंसी): कोरोना से लड़ने का अब तक का जो सबसे कारगर हथियार है, वो है सोशल डिस्टेंसिंग. यानि कि एक दूसरे से दूरी बनाए रखें. लेकिन ये दूरी तब तक ही बनी रह सकती है, जब तक लॉकडाउन चल रहा है. जैसे ही लॉकडाउन खत्म हो जाएगा, लोग अपने घरों से बाहर निकलेंगे और तब इस सोशल डिस्टेंसिंग को बरकरार रखना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हो जाएगा.
दुनिया में डॉक्टरों का एक और धड़ा है, जो ये कह रहा है कि सोशल डिस्टेंसिंग या फिर लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं, बल्कि सिर्फ तात्कालिक बचाव है. इसलिए तात्कालिक की जगह स्थायी उपाय अपनाना चाहिए और इसके लिए लोगों को अपने घरों से बाहर आना चाहिए. जब लोग अपने घरों से बाहर आएंगे, तो बहुत संभव है कि उन्हें कोरोना का संक्रमण हो जाएगा. जितने ज्यादा लोग इस वायरस से संक्रमित होंगे, इंसान के शरीर में उतनी ही इस वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी, जो कोरोना के खिलाफ स्थायी इलाज के तौर पर काम करेगी. इसे ही हर्ड इम्युनिटी कहा जा रहा है.
अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश के लिहाज से हर्ड इम्युनिटी का हिंदी में मतलब है सामाजिक रोग प्रतिरोधक क्षमता. कोरोना के दौर में ये शब्द और भी मानीखेज है. एक पक्ष कोरोना से लड़ने के लिए सामाजिक दूरी बनाने की बात कह रहा है, तो दूसरा पक्ष समाज के एक बड़े हिस्से को कोरोना से संक्रमित करने की बात कह रहा है, ताकि समाज के उस बड़े हिस्से में कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सके. ब्रिटेन की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनोमिक्स एंड पॉलिसी (CDDEP) के विशेषज्ञों का ये मानना है कि जब समाज का एक बड़ा हिस्सा कोरोना से संक्रमित हो जाएगा तो फिर कोरोना वायरस संक्रमण के लिए किसी नए शरीर को नहीं खोज पाएगा, क्योंकि पहले से ही संक्रमण मौजूद है. और ऐसी स्थिति में संक्रमित शरीर उस वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की कोशिश करना शुरू कर देगा. एक बार जब बड़े पैमाने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी, तो फिर ऐसे लोगों के जरिए कोरोना का टीका या एंडीबॉडीज़ बनाने की कोशिश की जा सकती है.
हर्ड इम्युनिटी इलाज का एक पुराना तरीका है. इसमें या तो बड़ी आबादी को वैक्सीन दी जाती है, जिससे उसके शरीर में एंटीबॉडीज़ बन जाती हैं. जैसे चेचक, खसरा और पोलियो के साथ हुआ. दुनिया भर में लोगों को इसकी वैक्सीन दी गई और ये रोग अब लगभग खत्म हो गए हैं. या किसी को होता भी है, तो उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है और फिर बीमारी का असर नहीं होता है. दूसरा ये है कि अगर किसी बीमारी का टीका ही नहीं है जैसे कि कोरोना तो फिर बड़ी आबादी को बीमारी से संक्रमित किया जाता है. संक्रमित लोगों को और नए लोग संक्रमण फैलाने के लिए नहीं मिलते हैं, क्योंकि उनके आस-पास के लोग भी उसी बीमारी से संक्रमित रहते हैं और फिर लोगों के शरीर में खुद से एंटीबॉडीज बनने की शुरुआत हो जाती है. कुछ दिन में शरीर उस वायरस से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है और फिर वायरस नाकाम हो जाता है.
कोरोना के दौर में इसका सबसे पहले जिक्र किया है ब्रिटेन ने. ब्रिटेन के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार पैट्रिक वैलेंस ने कहा है कि अगर ब्रिटेन की 60 फीसदी आबादी को कोरोना से संक्रमित कर दिया जाए, तो फिर वहां पर लोगों के शरीर में कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी और ब्रिटेन से कोरोना खत्म हो जाएगा. हालांकि ब्रिटेन में अब भी इस प्रकिया पर काम शुरू नहीं हो पाया है. क्योंकि इसमें खतरा ज्यादा है. इससे पहले जब चेचक का टीका बना और हर्ड इम्युनिटी विकसित की गई तो पता था कि चेचक का एक मरीज 12 से 18 लोगों को संक्रमित कर सकता है. इन्फ्लुएंजा का भी पता था कि एक मरीज 1.2 से लेकर 4.5 लोगों को संक्रमित कर सकता है. लेकिन कोरोना का टीका बना नहीं है और कोरोना से संक्रमित एक मरीज दो से तीन लोगों को संक्रमित कर सकता है.
वहीं स्वीडन भी अब हर्ड इम्युनिटी पर काम करने की तैयारी कर रहा है. हालांकि अमेरिका ने स्वीडन को हर्ड इम्युनिटी पर काम करने से रोक दिया है, फिर भी ऐसी खबरें आ रही हैं कि स्वीडन हर्ड इम्युनिटी पर आगे बढ़ने की तैयारी में है. 28 मार्च को स्वीडन के 2000 से भी ज्यादा रिसर्चर्स ने एक पेटिशन पर साइन किए और कहा कि अब सरकार को स्वीडन में हर्ड इम्युनिटी पर आगे बढ़ना चाहिए. हालांकि स्वीडन में सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया क्योंकि फिलहाल स्वीडन में कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या में इजाफा हो गया है. 1 करोड़ से थोड़ी सी ज्यादा आबादी वाले देश में 2462 लोगों की मौत हो चुकी है और 20 हजार से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं.