घूरे के दिन भी फिरते हैं, ऐसा ज्ञानीजन कहते आए हैं।
चुनाव के समय अपुन देखते हैं कि कैसे-कैसे घूरे या घूरों के दिन फिर जाते हैं।
(अविरल समाचार). जिन गुमनाम छुटभैये नेताओं को पाठक या दर्शक जानता नहीं था, वे भी मीडिया की खबर बन जाते हैं। हर पार्टी के पास दलबदलुओं का अच्छा-खासा स्टॉक जमा हो जाता है। पार्टियाँ रौब गालिब करने के लिए विपक्षी दलों के लोगों को अपने दल में मिलाने की कोशिश करती है। पार्टी की साख का सवाल होता है। आजकल साख ज्यादा महत्वपूर्ण है। वैसे भी यह समय मार्केटिंग का है।
आप अंदर कैसे भी रहें, बाहर इमेज अच्छी रहनी चाहिए। घटिया-से-घटिया माल भी अच्छी मार्केटिंग के सहारे लोगों की जुबान पर चढ़ कर उनकी जरूरत बन जाता है। तो ‘कॉम्पटीशन के दौर में मार्केटिंग पर ध्यान जरूरी है। गिरती साख को उठाना हो या बनी हुई साख को बनाए रखना है, ऊपर चढ़ाना है, तो इसके लिए दलबदल ही एक सस्ता, सुंदर और टिकाऊ तरीका है। प्रथम श्रेणी के नेता न मिले तो पंचम्, षष्ठम् या सप्तम् श्रेणी के नेता भी चलेंगे। उन्हें दलबदल के लिए राजी करें। प्रलोभन दें। उनकी असंतुष्ट भावना को आप हवा दें।
हर छुटभैया नेता आजकल दलबदल के लिए तैयार रहता है।
वह मौके की तलाश में रहता है। मौका देख के मारो चौका। कोई बोले तो सही कि आओ, हमरे दल की शोभा बढ़ाओ। छुटभैया सोचता है, दलबदल करो तो अखबार वाले बढ़ा-चढ़ा कर खबरें छाप देते हैं। जैसे,
कल्लूराम फलां पार्टी में।….
लल्लूराम ने झटका दिया। पार्टी छोड़ी…
छदामीराम सौ समर्थकों के साथ अखिल भारतीय लूटमार दल में शामिल…
…आदि-आदि। मुहल्लास्तरीय नेताओं के भी भाग्य खुल जाते हैं। बैठे-बिठाए नाम छप जाता है। वरना रिपोर्टरों के आगे-पीछे घूमते रहो, तब भी नाम नहीं छपता। दलदबल करो तो पार्टी वाले विज्ञप्ति जारी कर के ढिंढोरा पीटते हैं। फिर उसके बाद विपक्ष के लोगों का जवाबी हमला होता है।
एक कहता है, ”लल्लूराम के आने से पार्टी मजबूत होगी।
दूसरा दल कहता है, ”लल्लूराम के जाने से पार्टी का कचरा साफ हो गया।
पहला दल फिर विज्ञप्ति जारी कर के बताता है कि ”लल्लूराम हमारी पार्टी में आकर पवित्र हो गए।
दूसरा दल करारा जवाब देता है, ”हमारा कचरा आपके दल में जाकर सबको कचरा कर देगा।
इस तरह विज्ञप्ति-युद्ध का फायदा पंचम श्रेणी के नेता लल्लूराम को मिलता है और देखते-ही-देखते उसकी श्रेणी बढऩे लगती है। वह मुहल्ले में पॉपुलर हो जाता है।
मुहल्ले के लोग बधाई देते हैं, ”अच्छा हुआ, आपने दलदबल कर लिया।
लल्लूराम हँसते हैं, ”हाँ, पार्टी में तो मेरा दम घुट रहा था। अब राहत मिल रही है।
लोग पूछते हैं, ”अब क्या इरादा है ?
देखते-ही-देखते लल्लूराम पार्टी के दुमछल्ला बन जाते हैं।
कुछ दलबदलुओं को हर पार्टी में बहुत जल्दी दम घुटने लगता है। सुबह दल बदलते हैं, तो दोपहर को दम घुटने लगता है और वे पार्टी छोड़ देते हैं और नई पार्टी में जा घुसते हैं।
कल्लू जी ने तो एक दफे गजब ही कर दिया था।
सुबह अखिल भारतीय ठग पार्टी (अभठपा) छोड़ी और…
दोपहर को भारतीय लूटमार संघ की सदस्यता ले ली। …
भारतीय लूटमार संघ (भालूसं) ने दलबदल का समाचार जारी किया, लेकिन शाम को जैसे ही खबर छपी कल्लू जी का दम घुटने लगा और उन्होंने भालूसं छोड़कर नई पार्टी अभाचोपा (अखिल भारतीय चोर पार्टी) ज्वाइन कर ली।
…तो ऐसे चमत्कार हो जाते हैं दलबदल के चक्कर में।
साँप भी शरमा जाता है केंचुल बदलने में। चुनाव के समय दलबदल एक्सप्रेस सुपरफास्ट हो जाती है। दलबदलू जल्द-से-जल्द सफलता के स्टेशन तक पहुँचना चाहता है।
किसी को टिकट मिल जाता है, तो किसी को कोई पद।
जैसी जिसकी औकात।
(लेखक प्रख्यात व्यंग्यकार, पत्रकार। व्यंग्य साहित्य की अप्रतिम सेवा के लिए दिल्ली में व्यंग्य के सबसे बड़े सम्मान ‘व्यंग्यश्री‘ से विभूषित हैं। आपके २३ व्यंग्य संग्रह और अस्सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। )