लद्दाख में पारा शून्य के नीचे पहुंचा, 1962 के बाद पहली बार भारत-चीन के सैनिक ऐसे सर्द मौसम में होंगे आमने-सामने

नई दिल्ली (एजेंसी). लद्दाख में भारत और चीन के बीच खींचतान का सबब बन रही पैंगोंग झील के इलाके में रात का तापमान शून्य से नीचे जाने लगा है. भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद पिछले पांच महीनों से नहीं सुलझ पाया है. 12 अक्टूबर को हुई 7वें दौर की सैन्य कमांडर वार्ता भी न तो सैनिक आमना-सामना खत्म करने कोई फार्मूला दे पाई और न ही समाधान की समय सीमा का फ्रेम तय कर सकी.

ऐसे में अब यह साफ दिखने लगा है कि भारतीय सैनिकों को माइनस तापमान और मुश्किल हालात में लद्दाखी पठार की पहाड़ी चोटियों से अपने फौलादी हौसलों की ताकत चीन को दिखानी होगी. यानी 1962 के बाद पहली बार दोनों देशों के सैनिक इस तरह आमने-सामने की मोर्चाबन्दी में लद्दाख में तैनात होंगे. इस इलाके के निचले भागों में ही अक्टूबर-नवम्बर का न्यूनतम तापमान औसतन शून्य से 14 डिग्री तक नीचे जाता है. वहीं कठिन पहाड़ी चोटियों पर तो पारा अधिकतर शून्य से नीचे ही रहता है.

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1962 में चीन ने अक्टूबर के महीने में ही भारत पर हमला बोला था. चीनी सेनाओं ने 20 अक्टूबर को आक्रमण किया था और करीब एक महीने तक चली इस लड़ाई के बाद 21 नवंबर 1962 को एकतरफा तरीके से संघर्षविराम का ऐलान किया था. इसी लड़ाई से भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी की पैदाइश हुई जो आजतक विवाद की जड़ है.

चुशूल इलाके में गत सोमवार 13 घंटे तक चली बातचीत के बाद भारत और चीन के तरफ से जारी बयानों में मामला सुलझाने के लिए कोशिश जारी रखने की बात कही गई है. हालांकि असलियत यह है कि बातचीत का दौर फिलहाल आमने-सामने की मोर्चाबंदी यानी डिसएंगेजमेंट को हटाने को लेकर ही अटका हुआ है. चीनी सेना इस बात को लेकर अड़ी हुई है कि भारत उन चोटियों को खाली करे जहां उसने 29-31 अगस्त और सितंबर के शुरुआती दिनों में नए रणनीतिक मोर्चे बांधे. वहीं भारत का कहना है कि सैनिकों को फोनों तरफ से पीछे हटाया जाना चाहिए और यह काम लद्दाख में एलएसी के सभी मोर्चों पर होना चाहिए.

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इस बीच चीनी मंसूबों को भांप भारत ने लद्दाख के मोर्चे पर सैनिकों की लंबी तैनाती के लिए काम काफी समय पहले ही शुरू कर दिया था. रक्षा मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक लद्दाख में सख्त सर्दी में भी भारतीय सैनिक डटे रहे इसके लिए इंतजाम तेजी से हो रहे हैं. इसमें सैनिकों के गर्म कपड़े, बेहतर बूट, अच्छे टेंट से लेकर उनकी मेडिकल सुविधाओं और पर्याप्त राशन आपूर्ति की व्यवस्था शामिल है.

हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह सेना के लिए एक बड़ी चुनौती भी है. क्योंकि एक साथ ऊंचाई के अनेक मोर्चों पर सैनिकों की रोजमर्रा ज़रूरत की एक साथ आपूर्ति करना काफी कठिन है. इसके लिए सेना को क़ई जगह बड़े लॉजिस्टिक बेस और एक ऐसी सतत सप्लाई चेन की ज़रूरत है जो इस इलाके में पहले नहीं थी. पहले स्थापित व्यवस्था के मुताबिक चीन और भारत के सैनिक साल में केवल अप्रैल से अक्टूबर तक गश्त के लिए जाते थे. बाकी समय वो अपने बेस के इलाकों में होते थे. साथ ही केवल एक सीमित संख्या में ही सैनिक रखे जाते थे.

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सैन्य सूत्रों के मुताबिक भारतीय सेना ने जहां अपने सैनिकों को पूरी तैयारी के साथ तैनात कर रखा है. वहीं किसी भी सम्भावित स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त सैनिक दस्तों को भी कम ऑक्सिजन और कड़ी सर्दी वाले लद्दाख इलाके में भेजने के लिए तैनात भी कर रखा है. इनका इस्तेमाल ऊंचाई के इलाके में सैनिक तैनाती के रोटेशन में भी किया जाना है। सूत्र बताते हैं कि चीन की तरफ से की गई 50 हजार से अधिक सैनिकों से मुकाबले के लिए भारत ने बराबरी से अपने फौजी तैनात किए हैं.

जानकारों के मुताबिक चीन के साथ यह तनाव नहीं सुलझता तो इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि फिलहाल एलएसी पाकिस्तान से सटी एलएसी की तरह नज़र आए. यानी ऐसा मोर्चा जहां हर वक्त दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने संगीनों के साये में तैनात रहते हैं.

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