रोजगार बना चुनावी मुद्दा, जानिए- जॉब को लेकर किस पार्टी के क्या हैं वादे, सूबे में बेरोजगारी की दर क्या है?

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार रोजगार एक बड़ा मुद्दा बन गया है. सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में रोजगार देने के वादे को खास जगह दी है. जहां आरजेडी ने 10 लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा किया है. वहीं बीजेपी ने घोषणा पत्र में 19 लाख नई नौकरियां पैदा करने का वादा किया है. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ जेडीयू का कहना है कि उसने पहले ही अपने कार्यकाल में 6 लाख नौकरियां पैदा की हैं, अब 60 हजार और नौकरियां पैदा की जा रही हैं.

कांग्रेस ने कहा कि अगर वह बिहार की सत्ता में आती है तो नौकरी मिलने तक बेरोजगारों को 1500 हजार रुपये मासिक भत्ता देगी. साथ ही कहा कि नई सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख नौकरी देने का फैसला लिया जाएगा.

चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने अपने घोषणापत्र में कितने रोजगार देंगे इसकी संख्या तो नहीं बताई है लेकिन जोर एलजेपी का भी रोजगार पर ही है. एलजेपी ने कहा कि कहा है कि वह एक वेब पोर्टल का निर्माण करेगी जहां नौकरी चाहने वाले और नियोक्ता सीधे जुड़ सकते हैं.

बिहार में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है. सीएमआईई के अनुसार, बिहार में सितंबर में बेरोजगारी दर 11.9 फीसदी रही, जबकि देश में ये दर 7.4 फीसदी है.

मार्च में लॉकडाउन के बाद से रोजगार का मुद्दा अचानक गायब हो गया है, जिससे लाखों प्रवासियों (आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 15 लाख से अधिक) को अपनी नौकरी खोने के बाद बिहार वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा. अप्रैल और मई में बिहार में बेरोजगारी की दर 46 फीसदी थी.

एक रिसर्च के अनुसार, राज्य के आधे से ज्यादा परिवार प्रवासी हैं और उनमें से अधिकांश अपनी आजीविका के लिए प्रेषण पर निर्भर हैं. 2018-19 की पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार, बिहार के सिर्फ 10.4 फीसदी श्रमिकों के पास एक वेतनभोगी नौकरी थी. जबकि भारत में ये आंकड़ा 23.8 फीसदी है.

इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 7.18 करोड़ योग्य मतदाताओं में से 78 लाख पहली बार मतदान करेंगे. लगभग 4 करोड़ मतदाताओं की उम्र 18 से 40 के बीच है. इस ग्रुप के लोगों के लिए नौकरियां मिलना या नौकरियां खोना एक बड़ा मुद्दा है.

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