भाजपा छत्तीसगढ़ में सता से दूर फिर भी बगावत के सुर

रायपुर (अविरल समाचार). भारतीय जनता पार्टी (BJP) को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में सत्ता से दूर हुए 10 माह हो गए. पार्टी अभी भी इस खुमारी से उबर नहीं पाई है. संघर्ष का दौर आ चूका हैं. नेता हार के बाद भी मद मस्त है. स्वाभाविक भी हैं 15 वर्ष का नशा इतनी जल्दी तो उतरने से रहा ! संगठन चुनाव सर पर है. निचले स्तर पर तो शांति से चुनाव हो गया. अब संगठन की सबसे महत्तवपूर्ण कड़ी को जोड़ के रखने का सवाल है. वो कड़ी है मंडल अध्यक्ष जिसे पार्टी का बेक बोन भी कहा जा सकता हैं. यही पर नजर आ रहा हैं बगावत का सुर. और इसे हवा दे रहे हैं प्रथम पंक्ति के नेता जिन पर पार्टी को पुनः प्रदेश में सता की दहलीज पर लाने की महती जिम्मेदारी है.

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भाजपा में मंडल अध्यक्ष के चुनाव चल रहे हैं शीर्ष नेतृत्व आम सहमती से चुनाव चाहता हैं और कार्यकर्त्ता अपनी पसंद का अध्यक्ष चाहता है. इन दोनों बातो में तो कुछ भी गलत नहीं है. नेता कार्यकर्त्ता ही बनाता हैं. मगर यहाँ तो गंगा उलटी बह रही है. नेता अपनी पसंद के कार्यकर्त्ता को चाहते है. यही पर से उठ रहे हैं बगावत के सुर. जिसे पार्टी के राष्ट्रिय नेतृत्व को समझना होगा. ये चिंगारी आज दबा दी गई तो कल ये दवानल बनकर फिर पार्टी को ही न निगल जाए.

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पुरे देश में भाजपा की हालत सबसे कमजोर कहीं नजर आ रही है तो वो छत्तीसगढ़ है. सत्ता में रहते हुए तो संगठन से तालमेल बिठाकर सब कुछ ठीक-ठाक दिखा दिया गया था. जिसका खामियाजा 2018 के चुनाव में पार्टी को भुगतना पड़ा. जिसका ठीकरा कार्यकर्ताओं के सर पर फोड़ दिया गया. भाजपा के कार्यकर्त्ता आज भी उत्साहित हैं इस बात का प्रमाण इसी से मिलता है की मंडल अध्यक्ष के लिए हर जगह 8-10 दावेदार सामने आ रहे हैं. और कार्यकर्त्ता अपनी पसंद के अध्यक्ष के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

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राजधानी रायपुर (Raipur) की ही बात करें तो यहाँ कई मंडलों में खुले तौर पर तो कहें दबे स्वर में बगावत नजर आ रही हैं. रायपुर के चार विधानसभा में केवल एक रायपुर दक्षिण में भाजपा है बाकी तीनो में कांग्रेस के विधायक हैं. इन जगहों पर ही ज्यादा विरोध हो रहा हैं. रायपुर ग्रामीण विधानसभा के बीरगांव और भनपुरी मंडल और उत्तर विधानसभा के तेलीबांधा मंडल में कार्यकर्त्ताओं की पसंद कोई और था मगर घोषणा किसी और के नाम की हो गई. जवाहरनगर मंडल में तो चुनाव अधिकारी ने घोषणा कर दी और जिले ने रोक दिया क्योंकि वहां पर शीर्ष नेतृत्व अपनी पसंद का अध्यक्ष चाहता था. इन मंडलों के कार्यकर्त्ता तो बड़ी संख्या में भाजपा कार्यालय, संगठन मंत्री और अन्य नीति नियंताओं से मिलकर विरोध दर्ज करवाए है ये जानकारी मिल रही है. वहीँ कुछ मंडल के कार्यकर्त्ता नगरीय निकाय चुनाव में टिकिट न मिलने के भय से शांत है मगर दबी जुबान में विरोध कर रहे हैं.

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कुल मिलाकर जिनके कंधो में पार्टी ने जिम्मेदारी दी हैं वो ही बंटाधार करने में लगे है. सांसद, विधायक, अध्यक्ष, पूर्व विधायक सब मिलकर संगठन में अपनी पसंद के लोगों को बिठाना चाहते हैं चाहे उसे आम कार्यकर्त्ता पसंद करे की नहीं करें. क्योंकि मंडल अध्यक्ष आपके होंगे तो जिला और फिर प्रदेश में भी आपकी पसंद. संघर्ष के इस दौर में पार्टी को आवश्यकता इस बात की हैं की उनको चुने जो क्षमतावान हो और उन्हें चार साल संगठन और संघर्ष की भट्टी में तपाकर कुंदन बनाया जा सके. जो पार्टी को पुनः सता की दहलीज पर ला सके.

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