धर्म के मार्ग में आने के लिए समय निश्चित नहीं : केवल दर्शनश्री

गुप्त तेला आज से : ललवानी

रायपुर 2 नवंबर 2018 (अविरल समाचार)। जैनसाधु केवल दर्शनश्री महाराज साहब ने कहा कि जैसे सांसों को लेने के लिए कोई समय निश्चित नहीं है, उसे हर समय लिया जा सकता है। वैसे ही धर्म के मार्ग में आने के लिए भी कोई समय निश्चित नहीं है। संसार से मुक्ति का एकमात्र उपाय दीक्षा स्वीकारना है। हमारे ऊपर गुरु भगवंतों के इतने परोपकार हैं कि वे हमें संसार से निकालने के लिए दीक्षा लेने के विचार तक पहुंचाते हैं। जीवन के किसी भी उम्र में संयम जीवन स्वीकार किया जाना चाहिए। अगर कोई वृद्ध भी संयम जीवन स्वीकारता है तो उसकी आलोचना मत करिए अन्यथा मोहनीकर्म बंधेगा।

उपरोक्त वक्तव्य श्रीमद् दर्शनश्री महाराज साहब ने विवेकानंद नगर स्थिति श्री संभवनाथ जिनालय प्रांगण में आयोजित धर्मसभा में आज चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जीवन में धर्म दो प्रकार के होते हैं। पहला क्रियात्मक धर्म और दूसार गुणात्मक धर्म। क्रियात्मक धर्म पूजा, सामयिक, आराधना, साधना है, जो निश्चित समय में किया जाता है। जबकि गुणात्मक धर्म समता, प्रसन्नता, क्षमा, दया के भाव हैं जो कहीं भी किसी भी समय और किसी भी परिस्थितियों में किए जा सकते हैं।

दर्शनश्री ने कहा कि धर्म करने की कोई उम्र नहीं होती है। 3 साल का बच्चा भी दीक्षा ले सकता है और 85 साल का वृद्ध भी दीक्षा ले सकता है। जबकि सांसारिक जगत में दोनों ही उम्र के लोगों के धर्म ग्रहण का उपहास उड़ाया जाता है। भगवान महावीर ने भी 30 वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली थी। उन्होंने प्रतीज्ञा ली थी कि जब तक माता-पिता जीवित हैं, मैं दीक्षा नहीं लूंगा। उन्होंने कहा किसी को दीक्षा लेने में देर हो सकती है। यह परिस्थितियों  पर निर्भर करता है। दूसरों के धर्म की अनुमोदना करिए आपको भी लाभ मिलेगा।

दर्शनश्री ने कहा कि संयम मार्ग में आने के लिए एक कल्याणक मित्र की आवश्यकता होती है। उसकी प्रेरणा से ही आप संयम जीवन आपना सकते हैं। यह मां,गुरु या महात्मा कोई भी हो सकते हैं। जब तक जीवन में संयम नहीं मिलेगा तब तक सही ज्ञान नहीं मिलेगा। वैसे ही जब तक आप धर्म का स्वाध्याय नहीं करेंगे तब तक भगवान के दर्शन नहीं कर पाएंगे। उन्होंने जैनकथा के माध्यम से बताया कि जब आपको दीक्षा प्राप्त हो जाती है तो जीवन में विनयशीलता, धर्म की प्राप्ति होती है और आपका अहंकार चला जाता है।

दर्शनश्री ने कहा कि आत्मा के स्वभाव में जीना धर्म है और विभाव में जीना अधर्म है। वैसे ही सद्भाग और सदभाव हैं। सब प्राणियों के प्रति मैत्री भाव सद्भाग है और अस्तित्व में किसी भी परिस्थिति में समभाव में रहना समभाव है। जीवन में जब तक ममत्व नहीं छूटेगा तब तक सद्गति और मुक्ति नहीं मिलेगी। धर्म साधना के लिए किसी भी उम्र में संयम ग्रहण करें और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ें।

चातुर्मास समिति के चन्द्रप्रकाश ललवानी ने बताया कि आज के तेले का अंतिम उपवास गौतम चंद गादिया का था। धर्मसभा में आज उनका बहुमान किया गया। कल से गुप्त तेला प्रारंभ हो रहा है। आज जीवदया के लिए दान पेटी भी रखी गई थी, श्रावक-श्राविकाओं ने जीवदया में दान दिया।

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