ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे
रायपुर (अविरल समाचार). स्कन्दपुराण में इस महाव्रत की प्रशंसा में कहा गया है:‘परात् परतरन नास्ति शिवरात्रि परात्परम। अर्थात, यह शिवरात्रि-व्रत परात्पर है अर्थात् इसके समान दूसरा कोई और व्रत नहीं है।
स्कन्द पुराण के नागरखण्ड में ऋषियों के पूछने पर सूत जी कहते हैं -माघ मास की पूर्णिमा के उपरांत कृष्णपक्ष में जो चतुर्दशी तिथि आती है, उसकी रात्रि ही शिवरात्रि है। उस समय सर्वव्यापी भगवान शिव समस्त शिवलिंगों में विशेष रूप से संक्रमण करते हैं। कलियुग में यह व्रत आसान तथा सब पापों का नाश करने वाला है। जिस कामना को मन में लेकर मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
इस लोक में जो चल अथवा अचल शिवलिंग हैं, उन सबमें उस रात्रि को भगवान शिव की शक्ति का संचार होता है। इसीलिए इस महारात्रि को शिवरात्रि कहा गया है। इस एक दिन उपवास रखते हुए शिव को पुष्प इत्यादि अर्पित करने से जीवन के सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है।