चीनी राजदूत का दोस्ती राग, भारत की दो टूक- LAC से पीछे हटने की प्रक्रिया पूरे करे चीन

नई दिल्ली(एजेंसी): वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के साथ बीते करीब तीन महीनों से जारी तनाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहे सवालों के बीच चीन अब भारतीय मिजाज को साधने की कोशिश में जुट गया है. चीन के राजदूत सुन वीदोंग ने कहा कि उनका देश शांतिपूर्ण विकास चाहता है और किसी भी तरह भारत के लिए खतरा नहीं है. चीन ने दोनों देशों के बीच सहकारिता और साझेदारी के मुद्दों पर ध्यान देने को लेकर जोर दिया.

इतना ही नहीं इंस्टीट्यूट ऑफ चाइना स्टडीज के कार्यक्रम में चीनी राजदूत ने कहा कि भारत और चीन एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते. दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत है और वो टकराव के जाल में उलझने की बजाए अपने मतभेदों को सुलझाने में सक्षम हैं. उनका कहना था कि भारत और चीन के लिए जरूरी है कि वो अपने मतभेदों का अच्छे से प्रबंधन करें और आपस में सहयोग बढ़ाएं.

हालांकि शांति की इन सुहानी बातें के बीच सुन वीदोंग ने गलवान घाटी की घटना के लिए जहां एक बार फिर भारत को ही जिम्मेदार ठहराया. वहीं एलएसी के इस इलाके में भारतीय सैन्य ढांचागत निर्माण को विवाद की वजह बताया. वहीं चीनी राजदूत ने गलवान घाटी की घटना में मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या बताने से भी यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ऐसा करने से फिलहाल चल रही स्थिति संभालने की कोशिशें प्रभावित होंगी.

इतना ही नहीं वास्तविक नियंत्रण रेखा को तय कर मानचित्र पर उतारने की कोशिशों में भी फिलहाल किसी तत्परता दिखाने से किनारा कर लिया. सवालों के जवाब में सुन वीदोंग का कहना था कि एक तरफा तरीके से एलएसी को परिभाषित करने से नए विवाद खड़े होंगे. महत्वपूर्ण है कि 2002 के बाद से दोनों देशों के बीच एलएसी निर्धारण और नक्शों के अदला-बदली की प्रक्रिया रुकी हुई है.

इस बीच चीनी राजदूत की तरफ से आए साझेदारी की तमाम बातों के बीच सरकारी सूत्रों के मुताबिक अभी भी जमीन पर पूरी तरह से तनावपूर्ण स्थिति सुलझी नहीं है. क्योंकि चीन की सेनाएं अभी तक न तो अप्रैल 2020 की स्थिति तक पीछे लौटी हैं और न ही उसने अपना सैन्य जमावड़ा कम किया है. ऐसे में भारत की आशंकाएं बरकरार हैं. इसके मद्देनजर ही सैन्य कमांडरों की बैठक एक बार फिर बुलाई गई है.

थिंक टैंक कार्यक्रम के दौरान चीनी राजदूत काफी देर तक इस बात पर जोर देते रहे कि चीन को आक्रामक बताना अनुचित है. उसके पांच हजार साल के इतिहास में वो भले ही दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क रहा हो लेकिन उसने किसी दूसरे देश को अपना उपनिवेश नहीं बनाया. इतना ही नहीं सुन वीदोंग ने भारत और चीन के बीच परस्पर मुनाफे की साझेदारी पर जोर दिया.

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