रायपुर (अविरल समाचार) । जैनाचार्य विजय कीर्तिचंद्र सूरीश्वर ने कहा कि जो व्यक्ति घर में धर्मी कहलाता है वही सच्चा धर्मी होता है। धर्मी होने का थर्मामीटर घर के लोगों का उस व्यक्ति के प्रति मान्यता है, भावना है। क्योंकि घर के लोग आपके लक्षणों को भली भांति जानते हैं। आप उन्हें धोखा नहीं दे सकते हैं। जीवन में कषाय (क्रोध,मान,माया,लोभ) की मंदता जरूरी है।
आचार्यश्री ने उक्त विचार आज विवेकानंद नगर स्थित श्री संभवनाथ जैन मंदिर प्रांगण की धर्मसभा में भगवान महावीर के समकालीन पट्टशिष्य़ धर्मदास रचित आगम ग्रंथ उपदेश माला पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमने धर्म आराधना खूब की है। लेकिन मोक्ष मार्ग में आगे नहीं बढ़े इसका एकमात्र कारण कषाय है। जैसे रोग दवाई के साथ बिना अपथ्य त्याग के ठीक नहीं होता। वैसे ही हमारी धर्मिक क्रियाएं भी कषाय को छोड़े बिना फलीभूत नहीं होती हैं। उन्होंने कहा धर्म करना सरल है। कषाय छोड़ना मुश्किल का काम है।
आचार्य़श्री न कहा कि जीवन से कषायों की समाप्ति के लिए प्रेम का आलंबन लेना चाहिए। उन्होंने दूसरे कषाय मान की व्याख्या करते हुए कहा कि आप स्वभाव से खड़ूस न बने। आपके परिवार में ज्यादा टोका-टोकी दूसरे सदस्यों के मान को ठेस पहुंचा सकती है। बुढ़ापे को सुधारना है, तो सोच समझ कर बोलो। जिन्होंने जहर का घूंट पिया है। घर में मौन पकड़ लिया है। चार बार बिना पूछे सलाह नहीं देते और धर्म करते हैं उनके ही परिवार में स्वर्ग का वातावरण बनता है। आपने एकआध वाक्य भी फालतू बोला और आपका स्वर्ग जोखिम में पड़ा। स्वर्ग को खत्म करने का काम कषाय करता है।
आचार्य़श्री ने कहा कि मान का कारण अहंकार है। अहंकार हमारी आत्मा के गुणों को खत्म कर देता है। अहंकार को समझ लेंगे तो उसका सार्थक उपय़ोग कर पाएंगे। अहंकार के जीवन में तीन परिणाम होते हैं। पहला मन में संक्लेश छा जाता है। मेरी कदर नहीं करते, फिर गुस्सा आ जाता है और संक्लेश छा जाता है। अभिमान की पुष्टि नहीं मिलती तो उसके मन में संक्लेश छा जाता है। जिसका जितना बड़ा अभिमान होता है उसका उतना बड़ा संक्लेश होता है। अहंकार आदमी को फुलाने का काम करता है। नम्रता आदमी को फैलाने का काम करती है। जो फूलेगा वो फूटेगा। जो फैलता है चिरंजीवी बनता है।
आचार्यश्री ने कहा कि अहंकार का दूसरा परिणाम जीवन में समस्याग्रस्तता होती है। जीवन में हर कदम पर संघर्ष है, क्योंकि भीतर अहंकार बैठा होता है। बचपन में खिलौने-चाकलेट के लिए मां-पिता से संघर्ष। स्कूल में शिक्षकों, सहपाठियों से संघर्ष। बड़े होने पर परिवार और पत्नी से संघर्ष। अहंकार ग्रस्त आदमी अपनी समस्या का समाधान ही नहीं चाहता है। मुझे मतलब ही नहीं है। और अंत का परिणाम परिवार के अंदर संघर्ष पैदा होता है। क्रोध और मान के पीछे उनका बड़ा भाई अभिमान खड़ा रहता है। वही पीछे रह कर सारा खेल खेलता है। मान और क्रोध से बचने का सबसे सरल उपाय परमात्मा का जाप है।
शुक्रवार से तीन दिन बाल शिविर : बरडिया
चातुर्मास समिति के उपाध्यक्ष मांगीलाल बरडिया ने बताया कि आगामी शुक्र, शनि और रविवार को धर्मसभा में बाल शिविर आयोजित किया जाएगा। प्रतिदिन डेढ़ घंटे के शिविर में बच्चों में धर्म के संस्कार दिए जाएंगे और पुरस्कृत किया जाएगा। धनतेरस के दिन महालक्ष्मी महापूजन का कार्यक्रम होगा। इस महापूजन के विधिकारक हर्षद भाई आकोला वाले होंगे। इस महापूजन में महालक्ष्मी यंत्र सिद्ध किया जाएगा। इस पूजन के लिए मात्र 2 सौ सीट हैं, जिसे पहले आओ पहले पाओ के आधार पर आबंटित किया जाएगा।