नई दिल्ली (एजेंसी)। चुनाव आयोग ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से साल 2017-18 में सबसे ज्यादा 210 करोड़ रुपये का चंदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिला है। बाकी सारे दल मिलाकर भी इस बॉन्ड से सिर्फ 11 करोड़ रुपये का चंदा हासिल कर पाए थे। चुनाव आयोग ने इस मामले में चल रही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट को गुरुवार को जानकारी दी और आंकड़ों की पुष्टि की है।
राजनीति में पारदर्शिता बढ़ाने और प्रचार के दौरान नकदी के इस्तेमाल पर नज़र रखने के लिए मोदी सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड्स लेकर आई थी, ये बॉन्ड्स सत्तारूढ़ बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाने वाले साबित हुए हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
इलेक्टोरल बॉन्ड अभी सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक से ही खरीदे जा सकते हैं। एडीआर को सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिले जवाब के मुताबिक बीते एक साल में इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री में 62% का उछाल आया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2016-17 में बीजेपी को कुल 997 करोड़ और साल 2017-18 में कुल 990 करोड़ रुपये का चंदा हासिल हुआ था। यह इसी अवधि में कांग्रेस को मिले चंदे का करीब पांच गुना है। चुनाव आयोग की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वकील राकेश द्विवेदी ने एडीआर की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे के बारे में बताया। चुनाव आयोग ने बताया है, ‘बीजेपी ने जो रसीद दी है उसके मुताबिक उसे इलेक्टोरल बॉन्ड से 210 करोड़ रुपये मिले हैं। बाकी अन्य सभी दलों को इनसे कुल 11 करोड़ रुपये का चंदा मिला है।’
एडीआर की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण का भी यही तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से कॉरपोरेट और उद्योग जगत को फायदा हो रहा है और ऐसे बॉन्ड से मिले चंदे का 95 फीसदी हिस्सा बीजेपी को मिलता है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने विभिन्न पार्टियों की ओर से चुनाव आयोग को सौंपे गए टैक्स के विवरण का विश्लेषण किया। एडीआर गैर मुनाफ़े के आधार पर काम करने वाला इलेक्शन रिसर्च ग्रुप है।