‘सुसाइड की धमकी देना एक गंभीर मानसिक अत्याचार’ – दिल्ली हाईकोर्ट

नई दिल्ली (एजेंसी)। पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति ज्योति सिंह व न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी की पीठ ने भारतीय वायुसेना के फाइटर पायलट के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि आत्महत्या की धमकी देना और सुसाइड नोट लिखना एक गंभीर मानसिक अत्याचार है। पीठ ने प्रतिवादी के अधिवक्ता की दलील को सही ठहराया कि बतौर पायलट वैवाहिक जीवन के तनाव का असर प्रतिवादी की नौकरी पर पड़ रहा है और उसे बेवजह की छुट्टी लेनी पड़ती है। पीठ ने उक्त टिप्पणी के साथ पारिवारिक अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया।

महिला ने पारिवारिक अदालत के 18 जुलाई 2016 के फैसले को चुनौती दी थी। इसमें महिला के पति को तलाक की अनुमति देते हुए दोनों की शादी को भंग कर दिया गया था। याचिका पर दो सदस्यीय पीठ ने यह भी कहा कि प्रतिवादी भविष्य में अपने पेशेवर जीवन से लेकर निजी जीवन में कोई और समस्या नहीं चाहता और उसे जीवन में आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पारिवारिक अदालत ने भी पाया कि याचिकाकर्ता ने मेट्रिमोनियल वेबसाइट पर दोबारा शादी के लिए अपना प्रोफाइल अपडेट किया था। इसमें उसने खुद को तलाकशुदा, वेटेड-डिवोर्स बताया है।

इस संबंध में उसे ई-मेल भी आई है। याचिकाकर्ता की इस दलील को मानना मुश्किल है, कि उसे प्रोफाइल अपडेट करने की जानकारी नहीं थी और उसका ई-मेल अकाउंट हैक किया गया था। पीठ ने कहा अगर परिवार के सदस्यों ने डाला है, तब भी याचिकाकर्ता को या तो इसकी जानकारी होगी या फिर इसमें उसकी सहमति रही होगी। अकाउंट हैक होने के संबंध में भी याचिकाकर्ता कोई सबूत नहीं पेश कर सका। पीठ ने पारिवारिक अदालत के फैसले को सही करार दिया कि आपसी झगड़ा ही प्रतिवादी को मानसिक रूप से परेशान कर रहा था।

वर्ष 2006 में याचिकाकर्ता की वायुसेना के फाइटर पायलट से शादी हुई थी और वर्ष 2008 में उन्हें एक बेटा भी हुआ था। प्रतिवादी ने यह कहते हुए पारिवारिक अदालत में तलाक का आवेदन दिया था कि उनकी पत्नी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह है। उसे कपड़े पहनने का सलीका नहीं है, जोकि एक एयरफोर्स ऑफिसर की पत्नी से उम्मीद नहीं की जा सकती। इतना ही नहीं, वह उससे देर रात में लड़ाई और मारपीट करती थी।

इस कारण कई बार उसे छुट्टी लेनी पड़ती थी। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि उस पर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं। उसने न तो कभी आत्महत्या की कोई कोशिश की और न ही प्रतिवादी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज कराया। उसने दलील दी कि प्रतिवादी गर्भावस्था में भी उसकी देखभाल करने में नाकाम रहा।

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