नई दिल्ली(एजेंसी): मंदी के इस दौर में निवेश माध्यमों का भी हाल ठीक नहीं है. खास कर म्यूचु्अल फंड से तो बड़ी तादाद में निवेशकों का निकलना जारी हो गया है. कुछ लोग शेयर बाजार में आई फौरी तेजी का लाभ उठा कर निवेश से निकल जाना चाहते हैं तो कुछ लोग खराब रिटर्न से निराश हो कर निकलना चाहते हैं. इक्विटी फंडों का प्रदर्शन जिस तरह से खराब हुआ है उससे निवेशक निराश हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि म्यूचुअल फंड की शेयरों में निवेश से तुलना नहीं करनी चाहिए.
जब बाजार में दौर खराब चल रहा हो म्यूचुअल फंड को रोक कर यानी पॉज ऑप्शन अपना कर बाद में इसे शुरू कराना भी ठीक रणनीति नहीं है. सिप निवेशक को बाजार की तेजी और गिरावट दोनों में बरकरार रहना चाहिए तभी उन्हें म्यूचुअल फंड में निवेश का सही लाभ मिलता है.
जहां तक इक्विटी म्यूचुअल फंड से निकलने का सवाल है तो इसमें से तब निकलना चाहिए जब आप अपने निवेश लक्ष्य के नजदीक आ जाएं. लक्ष्य पूरा होने से छह महीने या एक साल पहले कभी भी बाजार की तेजी को देख कर इससे निकला जा सकता है. लेकिन छोटी अवधि के निवेशकों को कम से कम तीन से पांच साल का इंतजार करना चाहिए.
म्यूचुअल फंडों को शेयरों में ट्रेड की तरह ट्रीट न करें. इनसे शेयर की तरह रिटर्न नहीं मिलता है लेकिन गिरावट में ये आपके पोर्टफोलियो को बहुत बड़ा झटका भी नहीं देते. दरअसल शेयरों में निवेश जैसा फौरी निवेश फैसला इसमें लागू नहीं किया जा सकता. दरअसल जल्दी-जल्दी बेचने पर आप अतिरिक्त टैक्स के तौर पर बड़ी राशि भी गंवाते हैं. म्यूचुअल फंड स्कीम से पैसा निकलने पर एएमसी भी चार्ज वसूलती है. इसलिए म्यूचुअल फंड में निवेश से निकलने में जल्दबाजी न करें. यह स्लो कुकिंग का मामला है. जितना लंबे समय तक निवेश होगा उतना फायदा होगा.