नई दिल्ली (एजेंसी)। मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट शुक्रवार को पेश होना है। बजट से पहले गुरुवार को सरकार ने संसद में आर्थिक सर्वे पेश किया गया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने चुनौतियां हैं कि वह आम आदमी की उम्मीदों पर खरा उतर सकें। राज्यसभा और लोकसभा में आर्थिक सर्वे पेश कर दिया गया है। सर्वे के अनुसार, 2019-20 में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 7 फीसदी तक रह सकती है। इससे आगामी वित्त वर्ष के लिए नीतिगत फैसलों के संकेत भी मिले हैं।
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2018-19 में वित्तीय घाटे में कमी आई है और यह जीडीपी के सिर्फ 5.8 फीसदी रहा, जबकि इसके पिछले साल यह 6.4 फीसदी था। आर्थिक सर्वे के अनुसार अगर भारत को 2025 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाना है तो लगातार जीडीपी में 8 फीसदी की ग्रोथ रफ्तार हासिल करनी होगी।
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति उपायों से लोन के ब्याज दरों में कटौती करने में मदद मिलेगी। इसी तरह निवेश दर में जो कमी आ रही थी, वह भी अब लगता है कि रुक जाएगी। जनवरी से मार्च तिमाही में जीडीपी ग्रोथ में गिरावट पर आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि यह चुनाव संबंधी अनिश्चितता की वजह से था।
इसके अलावा पिछले वित्त वर्ष में कम ग्रोथ होने की एक वजह एनबीएफसी संकट भी है। गौरतलब है कि मार्च तिमाही में जीडीपी में बढ़त महज 5.8 फीसदी थी।
खेती के मामले में एक चिंताजनक बिंदु उठाते हुए इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि खाद्य वस्तुओं के दाम कम होने की वजह से शायद किसानों ने वित्त वर्ष 2018-19 में पैदावार कम किया है। हालांकि, यह भी कहा गया है कि साल 2018 की दूसरी छमाही से ही ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था में बढ़त आनी शुरू हो गई है।
सर्वे के अनुसार पिछले पांच साल में जीडीपी ग्रोथ औसतन 7.5 फीसदी रहा है। आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि बैंकों के गैर निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में कमी आने की वजह से पूंजीगत व्यय चक्र को बढ़ाने में मदद मिलेगी। लगातार एनपीए में कमी आ रही है, जिसका फायदा अर्थव्यवस्था को मिलेगा। सर्वे में कहा गया कि स्थिर वृहद आर्थिक दशाओं की वजह से इस साल अर्थव्यवस्था में स्थिरता रहेगी। हालांकि यह भी कहा गया है कि अगर ग्रोथ में कमी आई तो राजस्व संग्रह पर चोट पड़ सकती है।